Book Title: Swasthya Sadhan
Author(s): Mohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
Publisher: Gandhi Granthagar Banaras

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Page 82
________________ १५ - - छूत के रोग शीतला ( चेचक ) अब हम छूत के रोगों के उपचार के विषय में पुछ विचार करेंगे। यों तो सभी छत के रोग भयंकर ही होते हैं, लेकिन चेचक का रोग सबसे भयंकर होता है। इसलिये इसके सम्बन्ध में इस करण में विशेष रूप से विचार किया जायगा और शेष रोगों दूसरे प्रकरण में । हम लोग शीतला रोग से बहुत ही डरते हैं और इसके विषय हमारे कितने ही भ्रमपूर्ण विचार हैं। हम हिन्दुस्तानी इसे देवी न इसकी पूजा-पाठ करते हैं । वास्तव में इस रोग का कारण मेढ़े की खराबी है । मेदे की खराबी के कारण हमारा खून राब हो जाता है । हमारे खून में विष पैदा हो जाता है । ही चेचक का मूल कारण है । जब यही कारण है तो हमें इससे ने की बिलकुल आवश्यकता नहीं है । यदि यह सर्वथा छूत का होता तो दूसरे को भी रोगी के छूने मात्र से हो जाता, लेकिन धा ऐसा नहीं होता । यदि हम लोग सावधानी के साथ रोगी छूवें तो कुछ भी नुकसान नहीं हो सकता । लेकिन साथ ही इस बात का विश्वास नहीं कर लेना चाहिए कि रोगी छूने से छूने वाले को यह रोग हो ही नहीं सकता। क्योंकि जिनके दर वह विष पैदा हो जाता है उन्हें भी रोगी को छूने से यह पैदा हो जाता है । यही कारण है कि जब कभी किसी मोहले स रोग का प्रकोप होता है तो अधिकाश आदमी इसी रोग के हो जाते हैं और हमें भ्रम हो जाता है कि यह एक छत की री है इसी आधार पर लोगों को यह समझा दिया जाता है यह छूत की बीमारी है, इस प्रकार लोगों को बहका कर टीका या जाता है। उन्हें समझाया जाता है कि टीका लगाने से रोग नहीं होता । गाय के धन से चेचक का लस लगाकर

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