________________
जाता है । किसी को कब्ज हो जाती है, दस्त साफ नहीं आता, दस्त लाने के लिये उन्हें जोर लगाना पड़ता है जिससे अन्त में खून आने लगता है तथा बवासीर का मस्सा निकल आता है। किसी-किसी को संग्रहणी का रोग हो जाता है, किसी को पेचिसं हो जाती है और पेट में दर्द के साथ आँच आने लगता है।
इन सभी अवस्थाओं में रोगी की भख कम हो जाती है। उसका शरीर पीला और कमजोर होने लगता है। जीभ पीलो पड़ जाती है और स्वांस से दुर्गन्ध आने लगती है। किसी-किसी के सिर में पीड़ा होने लगती है कब्ज का रोग इतना प्रचलित हों बाया है कि उसके लिए सैकड़ों तरह की गोलियाँ और चूर्ण तैयार किये गये हैं। "मवसे-सिगल-शिरप" फ्रट-साल्ट इत्यादि इसी रोग की विशेष औषधि हैं । लाखों रोगी इसका प्रयोग करते हैं फिर भी रोग कम नहीं होता । साधारण से साधारण वैद्य या हकीम बतला सकता है कि अजोणं ही इस रोग का मूल कारण है तथा उसके निवारण का एकमात्र उपाय अजीर्ण को मिटाना ही है सचमुच आजकल के विज्ञापनों में यहाँ तक लिखा रहता है कि "हमारी दवा में परहेज करने की आवश्यकता नहीं है। केवल
बा खाने ही से रोग दूर हो जायगा"। पाठकों को मालूम होना चाहिये कि इस तरह का विज्ञापन बिलकुल गलत है। जुलाब का प्रभाव बहुत बुरा होता है । मामूली जुलाब भी कब्ज को दूर कर शरीर में दूसरी जहर उत्पन्न हर देता है। जुलाब स भले ही कज और संग्रहणी इत्यादि बीमारियाँ न हों लेकिन उससे कोई अन्य बीमारी होने की अवश्य सम्भावना रहती है । यदि उससे कुछ लाभ भी हो जाय तो रोगी मनष्य के जीवन और रहन-सहन में परिवर्तन हो जाता है यदि कोई अपनी पिछली बुरी आदतों को छोड़ दे और फिर कभी भविष्य में जुलाब न ले तो कुछ लाभ . हो सकता है । जुलाब लेने से पुराना रोग भले ही दूर हो जाय ।