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घ ही उस स्थान पर मिट्टी की पुलटिस बाँधनी चाहिए। इससे तन कम होकर रोगी को आराम मिलेगा जले हुए स्थान पर हाँ कपड़ा लिपटा हो वहाँ भी पुलटिस बाँधनी चाहिए। जब टिस सूखने लगे तो उसे तुरन्त बदल देना चाहिए। ठंडे पानी उपयोग से भो कोई हानि नहीं होती ।
जो मनुष्य जलने पर यथा समय उ रोक्त उपचार न कर सके उनके लिये निम्नाकिंत उपचार बहुत लाभदायक होंगे केले ताजे पत्ते पर जैतून या सरसों का तेल चुपड़ कर जली हुई ह में बाँधना चाहिए पत्ते के अभाव में पतले कपड़े का प्रयोग सकते हैं। अलसी के तेल में चूने का पानी बराबर मिला कर ने से लाभ होता है । जले स्थान पर चिपके पानी से तर कर धीरे-धीरे निकाल सकते हैं। दो दिन बाद हटाना चाहिए और उसके बाद रोज बदलना हिए। यदि फफोले उठ आये हों तो उन्हें धीरे-धीरे फोड़ देना हिये, लेकिन चमड़े को नहीं हटाना चाहिए ।
कपड़े को दूध
तेल की पहली
यदि आँच लगने के कारण चमड़ा केवल सुर्ख हो गया हो तो ल मिट्टी की पुलटिस ही लाभप्रद होगी। यदि अंगुलियाँ जल हों तो पुलटिस बाँधते समय इस बात की सावधानी रखनी हिए कि वे एक दूसरे से सटी न हों। तेजाब से जलने पर भी उपचार करना चाहिये ।
सर्प का काटना - सर्प के विषय में हम लोगों के भ्रम का कुछ काना नहीं है। बहुत दिनों से हम लोग इससे डरते आये हैं। तक की उसके नाम को सुनते ही हम काँप उठते हैं। हिन्दू इसकी पूजा करते हैं और इस पूजन के लिए एक खास दिन व्रत किए हुए हैं जिसे नागपञ्चमी कहते हैं। उनकी यह धारणा के पृथ्वी शेषनाग पर अबलम्बित है। भगवान् विष्णु को शेष