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धड़कन बन्द हो जाय । मोर के पंखे को उससे नाक के समीप रखने पर यदि जरा भी न हिले, शीशे को उसके मुंह के पास रखने पर यदि उस पर भाप न जमे, आँखें अधखुली रह जायँ, पलकें मोटी पड़ जायँ, अंगुलियाँ टेढ़ी पड़ जायँ, जबड़े जुट जायँ, जीभ दाँतों के बीच में आ जाय, मुह में फेन आ जाय, नाक लाल हो जाय
और सब शरीर पीला पड़ जाय तो समझना चाहिये कि रोगी मर गया । कभी-कभी इन लक्षणों के होते हुए भी प्राण रहता है। जब उसकी लाश सड़ने लगे तभी उसके मरने का निश्चय होता है। अतः रोगी को शीघ्र ही मरा न समझना चाहिये बल्कि बहुत देर तक उसकी सेवा करने के बाद ही उसकी आशा छोड़नी चाहिए।
जलना-कभी-कभी हम लोग किसी के कपड़े में आग लग जाने से घबड़ा उठते हैं और उसे सहायता देने के बदले अपनी मूर्खता के कारण उसे और भी विपत्ति में डाल देते हैं अतः ऐसी अवस्था में हमारा क्या कर्तव्य है यह जानना आवश्यक है।
जिस व्यक्ति के कपड़े में आग लग गयी हो उसे घबड़ाना नहीं चाहिए। यदि आग कपड़े के एक ही किनारे को पकड़ी हो तो उसे शीघ्र ही हाथ से वुझा देना चाहिए। लेकिन यदि समूचे या अधिक कपड़े में पकड़ ली हो तो उसे शीघ्र ही जमीन पर लेट कर लोटने लगना चाहिए। यदि कोई गलोचे जैसा मोटा कपड़ा मिले तो शीघ्र उसके बदन में लपेट देना चाहिए यदि पानी नजदीक हो तो शीघ्र उसके ऊपर गिरा देना चाहिए। ज्यों ही आग बुझ जाय हमें देखना चाहिए कि कहीं उसका अङ्ग तो नहीं जल गया है। जले हुए स्थान में बहुधा कपड़ा चिपक जाता है ऐसी हालत में हमें उसे जोर लगा कर नहीं छुड़ाना चाहिए। बल्कि धीरे से वस्त्र को कैची से काट लेना चाहिए ताकि जले हुए स्थान पर कुछ असर न पड़े और वहाँ का चमड़ान सिमट जाय इसके बाद