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क्योंकि सात वर्ष पश्चात् इससे मुक्ति पाने की कोई गारण्टी नहीं दी जा सकती। लेकिन अब तो तीन ही वर्ष के पश्चात् इसे लगाने की प्रथा निकली है। इन सब बातों से यही सिद्ध होता है कि डा० लोग स्वयं इससे सन्तुष्ट नहीं हैं। सच बात तो यह है कि यह नहीं कहा जा सकता कि टीका लगवाए हुए मनुष्य को यह रोग कभी होंगा ही नहीं, अथवा जिन्हें यह रोग हो जाता है वह टीका न लेने ही के कारण होता है।
(५ । अन्त में हम यह दावे के साथ कहते हैं कि लस एक गन्दी तथा दूषित पदार्थ है। ऐसी हालत मे कोई भी यह मानने को तैयार नहीं होगा कि गन्दगी से गन्दगो दूर होती है और यदि हम ऐसा मानते हैं तो यह हमारी निरी मूर्खता है । __उस संस्था ने दलीलों के सिवाय और भी अनेकों उदाहरण पेश करके लोगों को टीका लगवाने के विरुद्ध अपने पक्ष में कर लया है। अंग्रेजों की बहुत ऐसी बस्तियाँ हैं जहाँ के अधिकांश लोग टीका नहीं लगाते और फिर भी वे इस रोग से बचे हैं। टोके को जारी रखने की अनमति डाक्टरों की स्वार्थ सिद्धि के लिए है। क्योंकि उन्हें प्रजा की ओर से लाखों रुपये इस काम के लिए मल जाते हैं। इसी स्वार्थ ने उनकी आँखों पर पट्टी दे रक्खी है जसके कारण वे टीका से उत्पन्न बुराइयों को नहीं देख पाते। हाँ, कुछ ऐसे भी डाक्टर हैं जो इससे उत्पन्न बीमारियों को मानते है और इसके विरुद्ध हैं। ___ जो इसके सच्चे विरोधी हैं उन्हें चाहिए कि टीका न लेने के कारण उन पर जो कुछ भी कानूनी दण्ड लगाया जाय, उसे सहन करें । जो स्वास्थ्य की दृष्टि से इसका विरोध करते हैं, उन्हें इस वेषय की काफी जानकारी रखनी चाहिए ताकि वे अपना अनुभव दूसरों को भलि-भाँति समझा सकें। लेकिन वे जिन्हें न तो इसको काफी जानकारी ही है और न उनमें इतनी शक्ति ही है