Book Title: Swasthya Sadhan
Author(s): Mohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
Publisher: Gandhi Granthagar Banaras

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Page 84
________________ में केवल गाय के थन की लस ही नहीं लगाई जाती बल्कि शीतला ' रोग से पीड़ित मनुष्य के घाव के लस को भी मिला कर लगाया जाता है। इस पीब ( मवाद ) को देखकर कितने तो कै कर देंगे । यदि हाथ से छू जाती है तो हाथ को साबुन लगा कर धोना पड़ता है यदि कोई हँसी में भी हमें पीब चखने को कहे तो हमारा जी मिचलाने लगता है हम क्रोध से भर जाते हैं और उससे लड़ने को तैयार हो जाते हैं। लेकिन जो टिका लगवाते हैं, उनमें से बहुत कम ऐसे हैं जो इस बात पर विचार करते हों कि चे वास्तव में पीब ही खा रहे हैं। बहुतेरे इस बात को जानते हैं. अनेक रोगों में औषधि और पोषक पदार्थ खून में यन्त्र द्वारा भर दिया जाता है और वे अन्दर जाकर भोजन किए हुए पदार्थ : से भी पहले और अति शीघ्र हमारे खन में मिल जाते हैं। इस प्रकार औषधि लेने में और मुँह से खाने में केवल इतना ही अन्तर है कि मुँह से खाई बस्तु देर से खून में मिलता है और यन्त्रद्वारा शीघ्र ही मिल जाती है तो भी हम टीका लेते जरा नहीं हिचकते। कहावत है कि डरपोक लोग मृत्यु के पहले कई बार मर चुके होते हैं। हमारी टीका लेने की इच्छा एकमात्र इस रोग से बचने और उससे कुरूप होने के भय से ही उत्पन्न होती है । C इस प्रकार टीका लेकर शरीर में पोब संचारित करवाना मेरे विचार में धार्मिक एवं साचार की दृष्टि से भो घृत है। मांसा हारी लोग भी मरे हुए जानवरों का खून नहीं पीते फिर इस प्रकार जीवित प्राणी का खन और पीब खाने का तो प्रश्न ही नहीं उठाना चाहिए। जो ईश्वर से डरता है उसके लिये हजार वार चेचक का शिकार होना यहाँ तक कि मर भी जाना अच्छा है लेकिन इस प्रकार चमड़े द्वारा एक निरपराध जानवर के रक्त का पान करना अच्छा नहीं है । टीका लगवाने से जो हानियाँ होती हैं उनके ऊपर इंगलैण्ड के

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