Book Title: Swasthya Sadhan
Author(s): Mohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
Publisher: Gandhi Granthagar Banaras

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Page 89
________________ १६-छूत के अन्य दूसरे रोग छोटी शीतला से हम उतना नहीं डरते जितमा की उसकी बहन बड़ी शीतला से। क्योंकि हम सोचते हैं कि यह उतना घातक नहीं है और न इससे रोगी कुरूप ही होता है। लेकिन यह भी एक प्रकार का चेचक ही है और इसका भी उपचार उसी -तरह करना चाहिए जिस तरह शीतला का किया जाता है। शीतला, छोटी शीतला के सिवा, प्लेग, कालरा या हैजा और उड़ती पेचिस भी छूत के रोगों में शामिल हैं। ___प्लेग एक भयंकर रोग है। अंग्रेजी में इसे "व्यूवानिक प्लेग" कहते हैं। यह रोग पहले-पहल हमारे देश में सन् १८९६ ई० में उत्पन्न हुआ और तब से अबतक इसने असंख्य आदमियों को मृत्यु की गोद में सुला दिया है। इससे छुटकारा पाने के लिए डाक्टरों ने अनेकों औषधियों का आविष्कार किया है, लेकिन फिर भी इसकी समुचित औषधि तैयार नहीं हो सकी है। आज-कल प्लेग का एक टीका निकला है और लोगों की धारणा हो रही है कि इसके लगाने से रोग का आक्रमण नहीं होता। लेकिन प्लेग का टीका भी उतना ही हानिकारक और धार्मिक दृष्टि से पापमय है, जितना कि चेचक का टीका ! यद्यपि इस रोग के लिए कोई औषधि विशेष रूपसे तैयार नहीं हो सकी है फिर भी हम उन लोगों के लिए जिन्हें प्रकृति में पूर्ण विश्वास है तथा जो मृत्यु से नहों डरते, निम्नलिखित उपचार करने को सलाह देगें। (१) ज्योंही ज्वर शुरू हो, पानी से भिगी चादर 'वेट-शीट-पैक' का प्रयोग करना चाहिए। (२) गाँठ ( गिल्टी ) निकलने पर मिट्टी की मोटी पुलटिस बाँधना चाहिए। - (३) रोगी को पूर्ण उपवास करना चाहिए।

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