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कि वे उसके प्रचलित नियमों का उलंघन कर सक वहाँ के कानून ही के अनुसार चलना चाहिए । ____जो स्वास्थ्य के विचार से टीका नहीं लेना चाहते उन्हें स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों का अक्षरशः पालन करना चाहिये। जो लोग टीका लेना नहीं चाहते लेकिन विषय-भोग द्वारा सदा उसका लस लेते हैं या आरोग्य सम्बन्धी नियमों को भंग करते हैं, उन्हें समाज या देश सम्बन्धी नियमों के विरुद्ध जहाँ टीका लेना स्वास्थ्य के लिये आवश्यक माना जाता हो, आचरण करने का कोई अधिकार नहीं है। ___ अब तक तो हमने शीतला पर लगने वाले टीका के दोषों का वर्णन किया । अब हम शीतला के कुछ उपचार बतायँगे। जो लोग जल, वायु, भोजन के प्रकरण में बताए हुए नियमों के अन सार चलेंगे उन्हें तो यह बीमारी होगी ही नहीं और यदि किसी को चेचक निकल आवे तो सबसे उत्तम महौषधि "वेट-शीट-पैक" पानी से भीगी हुई चादर का बाँधना ही है। इसे दिन में कम से कम तीन बार बाँधना चाहिये, इससे ज्वर कम हो जाता है और धाव शीघ्र भर जाते हैं । घावों पर मरहम पट्टी अथवा तेल लगाने की बिलकुल आवश्यकता नहीं है । यदि सम्भव हो तो मिट्टी की पुलटिस एक दो स्थान पर, जहाँ बाँधने योग्य हो, बाँध देना चाहिये । रोगी को खाने के लिये चावल और हल्का फल देना चाहिये जिसमें नींबू का रस मिला हो । भारी खाद्य पदार्थ जैसे कि बादाम और खजूर बिलकुल नहीं देना चाहिए । हफ्ते के अंदर घाव उपरोक्त गीली चादर वाले उपचार से भर जाते हैं। यदि ऐसा न हो तो समझना चाहिये कि अभी शरीर का जहर निकल रहा है। चेचक को एक भयंकर रोग समझने की अपेक्षा यह समझना अच्छा है कि प्रकृति देवी हमारे शरीर में एकत्रित विष को इस रोग द्वारा निकाल कर हमें स्वास्थ्य प्रदान कर रही हैं।