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बहुत से विचारशील पुरुषों ने विचार किया है और उसके बहिकार के लिए एक अच्छी संस्था बनाई है इसके सदस्य खुले आम - इसका विरोध करते हैं जिनमें बहुतों को जेल की सजा भी दी गई है । वे निम्नांकित आधार पर इसका विरोध करते हैं :--
( १ ) गाय या बछड़े के थन से पीब निकालने में उन जीवित पशुओं पर क्रूरता का व्यवहार किया जाता है मनुष्य को दयाशील होना चाहिये, इस प्रकार की घृणित क्रियाएँ उसके व्यक्तित्व के लिये कलंक स्वरूप है। ऐसी हालत में टीका लगाने से यदि उसे कुछ लाभ भी होता हो तो नहीं लगाना चाहिये ।
( २ ) टीका से लाभ के बदले हानियाँ अधिक होती हैं, टीका लगाने के पहले जिन रोगों का नाम भी नहीं सुनने में आता था वे रोग अब प्रचलित हो गये हैं। इसके समर्थक भी इस बात से इन्कार नहीं कर सकते कि इसके आविष्कार के साथ ही साथ कई नये रोगों की भी उत्पत्ति हुई है ।
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(३) चेचक के रोगी के शरीर से जो लस लिया जाता है उसमें रोगी के अन्य अन्य रोगों के कीड़े भी सम्मिलित रहते हैं जो टीका लेने वालों में प्रवेश करके प्रायः उन्हीं रोगों को उत्पन्न करते हैं ।
( ४ ) इस बात का निश्चय नहीं है कि जिसने टीका ले लिया है उसे चेचक का रोग होगा ही नहीं। इसके आविष्कारक डा० जेनर की पहले यह धारणा थी कि केवल एक बार बाजू पर टीका लगाने से चेचक का रोग नहीं होता; लेकिन यह जब उनका भ्रम साबित हुआ तब उन्होंने दोनों बाजुओं पर टीका लगवाने की प्रथा आरम्भ की। जब यह भी गलत हुआ तब दोनों बाजुत्रों पर कई स्थानों पर लगाया जाने लगा। साथ ही यह भी कहा जाने लगा कि सात वर्ष पश्चात् इसे फिर से लेना चाहिए।
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