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भविष्य में उसकी होने वाली सन्तान भी उन्हीं वस्तुओं को पसन्द करेगी | यदि वह क्रोध करेगी या उसके अन्दर बुरी-बुरी भावनायें उत्पन्न होंगी तो उसकी सन्तान भी क्रोधी तथा बुरी भावना-वाली होगी । अतः इस नौ महीने की अवधि में उसे चाहिए कि वह अच्छे-अच्छे कार्य करे, व्यर्थ की चिन्ताओं को छोड़ दे, कोई बुरी वासना अन्दर न आने दे, कभी मूठ न बोले और एक पल भी बेकार एवं बुरी बातों में न बितावे । ऐसी माता की सन्तान अवश्य ही बलवान और पराक्रमी होगी ।
गर्भिणो को अपने शरीर और विचार को पवित्र रखना चाहिए। उसे स्वच्छ वायु में रहना चाहिये । उसे साधारण और पुष्टिकर पदार्थ उतनी ही मात्रा में खाना चाहिए जिसे वह सुगमता से पचा सके। यदि भोजन संबन्धी सभी नियमों का वह पालन करेगी तो उसे डाक्टर की सहायता की कोई आवश्यकता नहीं होगी यदि उसे दस्त की शिकायत हो तो उसके भोजन में जैतुन के तेल की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए । यदि उसे कै आवे या जी मिचलाता हो तो पानी में निम्बू का रस मिलाकर लेना चाहिये उसमें खाण्ड नहीं मिलाना चाहिये । गर्भावस्था के नौ महीनों में हर हालत में मसाला एवं बघार बिलकुल छोड़ देना चाहिए |
गर्भावस्था में स्त्रियों को नयी-नयी वस्तुओं के प्राप्ति की इच्छा होती है ऐसी हालत में उन्हें डा० लूईकूने के बतलाये हुए तरीके से स्नान करने से लाभ होता है । इससे उनका स्वास्थ्य और उत्साह बढ़ता है एवं उन्हें प्रसब की पीड़ा नहीं मालूम होती । गर्भावस्था में उनको अपने मन पर अधिकार रखना चाहिए। ज्यों ही किसी वस्तु की इच्छा पैदा हो उसे शीघ्र दबा देना चहिये | माता-पिता को चाहिये कि वे सदा गर्भस्थ बच्चे की रक्षा के लिये सावधानी रक्खें ।
पुरुष का कर्तव्य है कि वह ऐसी अवस्था में स्त्री को शांतमय