Book Title: Swasthya Sadhan
Author(s): Mohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
Publisher: Gandhi Granthagar Banaras

View full book text
Previous | Next

Page 92
________________ म उसी पानी को पीते हैं, क्योंकि उन दिनों में कुएँ का पानी म हो जाता है, हम लोग पानी को उबाल कर अथवा छान कर ही पीते। रोगी के पाखाने को भी खुला छोड़ देते हैं जिसका ल यह होता है कि रोग के कीड़े हवा में फैलते हैं। वास्तव में ब हम इस पर विचार करते हैं तो हमें मालूम होता है कि उपक्त विषयों पर हमारा बहुत कम ध्यान रहता है फिर भी हम इन गों से वञ्चित रहते हैं यह आश्चर्य की बात है। __ अब हमें उन बातों पर विचार करना चाहिए जिनकी जानरी कालरा के दिनों में हमारे लिए आवश्यक है। हमें उन दिनों का भोजन करना चाहिए। स्वच्छ हवा में साँस लेनी चाहिए। पानी हम पीते हैं सदैव उबाल कर, मोटे कपड़े से छानकर ना चाहिये। रोगी का पाखाना राख या मिट्टी से ढक देना हिए। पाखाने को राख या मिट्टी से ढकने की क्रिया तो हमें देव बिना रोक टोक के करनी चाहिए। ऐसा करने से रोग के जने का कम डर रहता है। बिल्ली गढा खोद कर पाखाना करती और उसे ढक देती है, लेकिन हम लोग उससे भी बदतर हैं। गोंकि हम घृणा अथवा छूआछूत के फेर में पड़ कर ऐसा न करके न बीमारी को फैलाते हैं और हजारों मनुष्यों को मृत्यु के मुख डाल देते हैं। जिन लोगों को छूत का रोग हो गया हो उनके पास रहने लों को चाहिये कि वे. हर तरह रोगी को विश्वास दिलायें कि व की कोई बात नहीं है । क्योंकि भय उत्पन्न होने ही से अक्सर गी को हानि पहुँचती है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117