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शीतला रोग दूर हो जाने पर भी कितने रोगी बहुत कमजोर किसी अन्य रोग में ग्रसित देखे जाते हैं। इसका मुख्य कारण चक से छुटकारा पाने के लिए किए गए गलत गलत उपचार । ज्वर में बहुतों को कुनैन के सेवन से बहिरापन हो जाता है . र कभी-कभी संज्ञाशून्य ( बहरापन विशेष ) का भी रोग जाता है । व्यभिचार से उत्पन्न होने वाले रोगोँ मेँ पारा का रोग किया जाता है, फल यह होता है कि पारा उस रोग को कर अन्य अनेक रोग पैदा कर देता है जिसे आजन्म भोगना ता है। दस्त साफ न होने पर दस्त लाने वाली औषधियों को -बार सेवन करने से बवासीर हो जाती है। उपरोक्त बातों पता चलता है कि अयोग्य औषधियों के सेवन से बीमारी ने की अपेक्षा और कितनी ही नयी-नयी बीमारियाँ पैदा हो ती हैं । अतः रोगों का उपचार बहुत सोच समझ कर करना हिए। वे ही उपचार लाभदायक हैं, जो रोग को जड़ से हटा दें र स्वास्थ्य पर कोई हानि न पहुँचे । बहुमूल्य भस्म भी जो रोगों लिए रामबाण औषधि समझे जाते हैं बहुधा हानिकारक सिद्ध ते हैं, क्योंकि यद्यपि वे गुणकारी प्रतीत होते हैं, लेकिन वे काम उत्तेजित करते हैं । फलतः स्वास्थ्य को बिगाड़ देते हैं ।
यदि चेचक के रोगो को उपरोक्त साधारण उपचार किया य, तो केवल रोग ही नहीं दूर होगा बल्कि रोगी शीघ्र स्वस्थ कर आजन्म इस रोग से मुक्त हो जायगा ।
चेचक हट जाने पर जब दाने सूखने लगें तो रोगी के शरीर पर "ओलिभ आयल" जैतून के तेल की मालिश करनी चाहिए उस रोज स्नान कराना चाहिए। इससे घाव की मूर्रियाँ शीघ्र जाती हैं; दाग मिटने लगते हैं और चमड़ा पहले जैसा होने ता है।