Book Title: Swasthya Sadhan
Author(s): Mohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
Publisher: Gandhi Granthagar Banaras

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Page 78
________________ सबसे पहले रोगी को उपवास करना चाहिए। यह हम लोगों का भ्रम है कि उपवास से रोगी और भी कमजोर हो जायगा । हम लोग पहले ही पढ़ चुके हैं कि भोजन का वही भाग हमारे लिये लाभप्रद होता है जिससे खून बने, शेष भाग केवल मेदे को गन्दा किए रहता है । ज्वर की दशा में हमारी पाचनशक्ति कम हो जाती है। जीभ काली या सफेद पड़ जाती है और होठ सूख जाते हैं। यदि ज्वर की दशा में रोगी को कुछ भोजन दिया जाय तो वह उसे हजम नहीं कर सकेगा और उसका ज्वर और भी अधिक बढ़ जायगा । उपवास करने से मेदे को भोजन पचाने का अवसर मिलता है इसी कारण रोगी को एक दो दिन उपवास करना चाहिए। साथ ही उसे लूईकूने के आदेशानुसार दिन में एक या दो बार स्नान कराना चाहिये । यदि वह अधिक निर्बल हो गया तो उसके पेट पर मिट्टी का पुलटिस बाँधनी चाहिए । अगर उसके सिर में पीड़ा हो तो भी मिट्टी की पुलटिस बाँधनी चाहिये । जहाँ तक सम्भव हो, रोगी का सिर कपड़े से ढक कर उसे खुली हवा में रखना चाहिए। उसे खाने के लिए सिर्फ नींबू का रस गर्म पानी में मिलाकर देना चाहिए और जहाँ तक हो सके उसमें खाण्ड मिलानी चाहिए । यदि ऐसा करने से रोगी के दाँत खट्टे न पड़ें तो केवल यही पथ्य देने से बड़ा हो लाभ होता है । इसके बाद आधा या एक केला, एक चम्मच जैतून का तेल निंबू के रस में मसलकर देना चाहिए । अगर उसे प्यास लगे तो पानी को एक घंटा टाने के बाद ठढा हो जाने पर देना चाहिए या निम्बू का रस देना चाहिए। पानी उबालकर ही देना चाहिए । ठण्डा पानी कभी भी नहीं देना चाहिए उसके पहिनने का वस्त्र भी साधारण और कम होना चाहिए और समय समय पर उसको बदलते रहना चाहिए । इस उपचार से टाइफाइड ज्वर वाले रोगी को भी आराम गया है और वह पूर्ण स्वस्थ हो गया है । कुनैन के प्रयोग से

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