Book Title: Swasthya Sadhan
Author(s): Mohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
Publisher: Gandhi Granthagar Banaras

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Page 77
________________ १३-ज्वर-चिकित्सा :: अब हम कुछ खास रोग और उनकी औषधियों के विषय में विचार करेंगे और सब से पहले ज्वर के विषय में । क्योंकि इस बीमारी का हमारे यहाँ भयंकर प्रकोप रहता है। हमारे शरीर में हरारत के कारण जब ताप बढ़ जाती है तब हम उसे ज्वर या बुखार कहते हैं । अंग्रेज डाक्टरों के मतानसार ज्वर कई प्रकार का होता है और वे उनकी औषधि भी अलग-अलग करते हैं। लेकिन इस प्रकरण में दिये हुए उपचार और औषधि के प्रयोग से हम लोग सभी तरह के ज्वर को आराम कर सकते हैं। मैंने हर किस्म के ज्वर में यहाँ तक कि प्लेग में भी एक ही तरह का उपचार किया है जिसका फल संतोषजनक हुआ है। सन् १९०१ ई० में दक्षिण अफ्रीका के हिन्दुस्तानियों में बड़े जोरों का प्लेग फैला था। इसका प्रकोप इतना भयंकर हो गया था कि चौबीस घन्ठे के अन्दर तेईस बीमार व्यक्तियों में इक्कीस मरे और शेष दो अस्पताल पहुँचाये गये जिनमें से एक अस्पताल में ही मर गया किन्तु दूसरा जिसके ऊपर मिट्टी की पुलटिस का प्रयोग किया गया था बच गया। हाँ, इतना अवश्य है कि इस घटना से हम निश्चयपूर्वक यह नहीं कह सकते कि वह मिट्टी.ही के उपचार से बचा; लेकिन हर हालत में यह कहा जा सकता है कि इससे उसे कुछ हानि नहीं हुई। फेफड़े में सूजन हो जाने के कारण वे दोनों ज्वर से बेहोश थे। जिसके ऊपर मिट्टी का प्रयोग किया गया था उसकी अवस्था ऐसी खराब हो रही थी कि उसके मुंह से खन आ रहा था। मुझे बाद में डाक्टर से मालूम हुआ कि उस रोगी को बहुत कम खुराक दी जाती थी। वह भी केवल दूध की। ज्वर अधिकतर मेदे की खराबी से उत्सन्न होता है। अतः

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