Book Title: Swasthya Sadhan
Author(s): Mohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
Publisher: Gandhi Granthagar Banaras

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Page 71
________________ लाने के लिए गुदा द्वारा पिचकारी लेने के सिवाय और कोई दूसरा उत्तम इलाज नहीं है। अनेक रोगों में जब कोई दूसरा इलाज काम नहीं करता तब यही लाभदायक सिद्ध होता है । इस क्रिया से शरीर का मल साफ हो जाता है और नया जहर नहीं जमता । जो लोग बात रोग, बादी, मेदे की खराबी इत्यादि से बीमार हों उन्हें गुदा द्वारा एक सेर पानी की पिचकारी लेनी चाहिये । इससे शीघ्र दस्त हो जायगा। इस विषय में एक लेखक लिखता है कि वह बदहजमी के चंगुल में पड़ गया था। उसने अनेक दवाइयाँ की, किन्तु उनसे कोई लाभ न हुआ बल्कि शरीर कमजोर होकर पीला पड़ गया अन्त में उसने पिचकारी लेना प्रारम्भ किया। इस प्रयोग के कुछ ही दिन बाद उसे खूब भूख लगने लगी और वह शीघ्र ही स्वस्थ हो गया। जिस बीमारी से शरीर पीला पड़ जाता है वह भी पिचकारी द्वारा अच्छी की जा सकती है अगर अधिक पिचकारी लेने की आवश्यकता पड़े तो ठण्डे पानी की लेनी चाहिए। गर्म पानी की पिचकारी से निर्बल होने की सम्भावना रहती है। लेकिन यह दोष पिचकारी का नहीं है। __जर्मन डाक्टर लुईकूने की यह राय है कि जल-चिकित्सा सब से उत्तम है। इस विषय पर लिखी हुई उसकी पुस्तकों की इतनी ख्याति बढ़ गई है कि दुनिया की प्रायः सभी भाषाओं में उनके अनुवाद हो गये हैं। हिन्दी भाषा में भी उनके अनवाद हुए हैं। लुईकूने सिद्धान्त के अनुसार सब रोगों की जड़ मेदा है। जब इसमें अधिक गर्मी रहती है तो शरीर के बाहरी भाग में फोड़े, फुन्सी या दूसरे चर्म रोग हो जाते हैं। लुईकूने से पहिले के लेखकों ने भी जल-चिकित्सा पर अपनी राय दी है। "पानी का उपचार" नामक पुस्तक लूईकूने की पुस्तकों से बहुत पहिले लिखी जा चुकी थी। लेकिन लूईकूने से पहिले किसी ने भी यह नहीं

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