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रख दी जाय, फिर कुर्सी के ऊपर एक कम्बल इस तरह रखे जिससे रोगी को आग की आँच न लगे। तब रोगी को उस कुर्सी पर बैठा दिया जाय और उसे एक कम्बल ओढ़ा दिया जाय इसके बाद पतीली का ढक्कन हटा दिया जाय ताकि जो भाप पतीली से से उठे रोगी को लगे। हम लोग प्रायः रोगी के सिर को कपड़े से ढके रहते हैं यह हानिकर है। भाप की गर्मी रोगी के बदन में होकर उसके सिर तक जाती है जिससे उसके शरीर से पसीना आने लगता है। यदि रोगी बहुत देर तक बैठ न सके तो उसे रस्सी या लोहे के पलंग पर लेटा कर भाप दे सकते हैं। भाप देते समय इस बात को सावधानी रखनी चाहिये कि कहीं रोगी या उसका कम्बल जल न जाय । साथ ही उसके स्वास्थ्य का भी काफी ध्यान रखना चाहिय क्योंकि भाप देने में जितना लाभ हे उतनी ही हानि भी हो सकती है। भाप लेने के बाद रोगी को कुछ विशेष कमजोरी मालूम होती है। लेकिन यह कमजोरी थोड़ी ही देर रहती है। प्रति दिन भाप नहीं लेना चाहिए ऐसा करने से भाप लेने की बुरी टेव पड़ जाता है और कमजारी बढ़ने लगती है। शरीर के किसी भी अवयव विशेष में भाप दिया जा सकता है। सिर दर्द में सारे शरीर में भाप की आवश्यकता नहीं है। सिर के ऊपर हल्का कपड़ा बाँध कर किसी तग मुंह वाले बर्तन से नाक द्वारा भाप लेना चाहिये ताकि उसका प्रभाव सिर तक पड़े। यदि नथुने बन्द हो गये हों तो ऐसा करने से वे भी खुल जाते हैं। इसी तरह यदि किसी विशेष अंग में सूजन आ गई हो तो केवल उतने ही हिस्से पर भाप का प्रयाग करना चाहिये। ___ गरम पानी और भाप से जो लाभ होते हैं उसे प्रायः सभी जानते हैं, लेकिन ठंडे पानी के लाभ को बहुत कम लोग समझते हैं यद्यपि गरम पानी की अपेक्षा ठंडा पानी अधिक लाभ पहुंचाता है