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किन्तु वर्त्तमान अवस्था में ऐसा करना कठिन है; क्योंकि हमारा भोजन, रहन-सहन, बातचीत और आस-पास के दृश्य ऐसे हो गये हैं जो सदैव हमारी कामवासना को उत्तेजित करते रहते हैं ' और आखिर में हमारे लिए विष का काम करते हैं । बहुतों को इसमें सन्देह होता है कि जब हमारी यह हालत है तब हम इससे कैसे छुटकारा पा सकते हैं । यह पुस्तक उन लोगों के लिए नहीं है जिनके मन में इस प्रकार के सन्देह रहते हों; बल्कि उनके लिए है जो सच्चे हृदय से इसका अभ्यास करने लग जायँ । जो अपनी वर्त्तमान अवस्था में ही सन्तुष्ट हैं वे तो इसे पढ़कर कुँझला उठेंगे। लेकिन मेरा विश्वास है कि जो लोग अपनी वत्तेमान परिस्थिति से घबड़ा गये हैं उनके लिए यह लाभदायक सिद्ध होगी ।
इन बातों से हम समझ सकते हैं कि जो अविवाहित हैं उन्हें अभी विवाह नहीं करना चाहिए और यदि किये बिना काम न चले तो जहाँ तक सम्भव हो देर से विवाह करें। युवकों को तो प्रतिज्ञा कर लेनी चाहिए कि पच्चीस-तीस वर्ष तक ब्याह नहीं करेंगे । ऐसा करने से जो शारीरिक लाभ उन्हें होगा उसे बतलाने की आवश्यकता नहीं है ।
इस प्रकरण के पढ़ने वाले माता-पिता से मेरी प्रार्थना है कि वे अपनी सन्तान की शादी बचपन में न करें। उन्हें उनके भविष्य का भी ख्याल रखना चाहिए । उन्हें समाज एवं प्रतिष्ठा के लिए व्याह करने की इच्छा छोड़ देनी चाहिए यदि वे उनके सच्चे हितैषी हैं तो उन्हें उनके शारीरिक तथा मानसिक बल को बढ़ाने की ओर ध्यान देना चाहिए | इससे बढ़कर और बुरी बात क्या हो सकती है कि बचपन में ही उनका हम व्याह कर उनके ऊपर एक बोझ लाद देते हैं और उनका स्वास्थ्य खराब कर उनका भविष्य बिगाड़ देते हैं ।