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"टकिंश बाथ” कहते हैं। यदि किसी मनुष्य को अधिक ज्वर हो गया हो और बुखार की गर्मी से उसका शरीर जल रहा हो तब यदि उसके सभी कपड़े उतार कर उसे खुली हवा में सुला दिया जाय तो उसके बुखार में शीघ्र कमी हो जाती है और उसे कुछ आराम मिलता है। यदि उसे ठण्ड मालूम हो और एक कम्बल ओढ़ा दें तो उसके बदन से पसीना निकलने लगता है और बुखार कम हो जाता है लेकिन हमलोग साधारणतः ऐसी दशा में इसके प्रतिकूल काम करते हैं। रोगी यदि खुली हवा में रहना चाहता है तो भी हम उसके कमरे के तमाम दरवाजे और खिड़कियाँ बन्द कर देते है और उसका सारा शरीर यहाँ तक कि सिर और कान भी ढक देते हैं। फल यह होता है कि रोगी घबड़ाने लगता है और कमजोर पड़ जाता है। यदि गर्मी के कारण बुखार आया हो तो उपरोक्त वायु का उपचार बहुत ही लाभदायक होता है। इसमें डरने की कोई जरूरत नहीं। हाँ, इसका ख्याल रखना चाहिए कि रोगी को अधिक ठंड न लगने पावे . यदि वह बिल्कुल नंगा न रह सके तो उसे कपड़े से ढककर बाहर खुली हवा में रखना चाहिए। ____ जीर्ण ज्वर और ऐसी ही अन्य बीमारियों के लिए आब-हवा बदलना एक अक्सीर दवा हैं। साधारणतः जो लोग आब-हवा बदलते हैं, वे एक प्रकार का वायु-उपचार ही करते हैं। हम लोग बहुधा अपने घर को इस भाव से भी बदलते हैं कि भूत-प्रेत के. वास से हमारा घर रोगी हो गया है यह हम लोगों का भ्रम है; क्योंकि भूत-प्रेत तो घर की दूषित वायु ही हुआ करती है। वास स्थान बदल देने से हवा बदल जाती है और फलतः रोग छूट जाता है । वास्तव में स्वस्थ्य और वायु से इतनी घनिष्टता है कि इवा का बदलना बुरा अथवा भला फल लाये बिना नहीं रहता। इवा बदलने के लिये धनी लोग तो दूर-दूर जा सकते हैं लेकिन