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बातों के साथ नहीं किया जा सकता। यह तो धर्म और नीति का विषय है । यहाँ इतना ही कहना उचित होगा कि वेश्या - गमन
परस्त्री सम्भोग के कारण हजारों मनष्य गर्मी, सुजाक तथा से ही अन्य रोगों के शिकार होते देखे जाते हैं । प्रकृति ऐसे त्री-पुरुषों को शीघ्र दण्ड देती है । उनके पाप फूट निकलते हैं और उन्हें डाक्टर का दरवाजा खटखटाना पड़ता है । जिस थान पर यह बातें नहीं होतीं वहाँ ५० प्रतिशत वैद्य और डाक्टर कार हो जाते हैं । मनष्य जाति को इन बीमारियों में फंसा देख डाक्टर लोग यह कहने को बाध्य होते हैं कि यदि पर- स्त्री गमन का यही सिलसिला जारी रहा तो औषधियों के सेवन करने पर संतान-नाश की सम्भावना बनी रहेगी । इन रोगों की दवा बहुत विषैली होती है। अतः रोग दूर हो जाने पर भी उसका प्रभाव बहुत बुरा पड़ता है। ये रोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी होते चले जाते हैं ।
इस विषय को समाप्त करते हुए मैं विवाहित स्त्री-पुरुषों को संक्षेप में ब्रह्मचर्य पालन करने के नियमों को बतला देना चाहता हूँ । भोजन, हवा और पानी के नियमों का पालन करने ही से ह्मचर्य की रक्षा नहीं हो सकती । पुरुष को स्त्री के साथ एकान्त में नहीं सोना चाहिए। स्त्री-पुरुष को विषय भोग ही के लिए एकान्त वास की आवश्यकता होती है। उन्हें रात में अलगअलग सोना चाहिये । दिन में अच्छे विचारों और कामों में लगे हना चाहिये उन्हें ऐसी किताबें पढ़नी चाहिएँ जो उनके अन्दर अच्छे विचार उत्पन्न करें, उन्हें महान पुरुषों का जीवन चरित्र पढ़कर शिक्षा लेनी चाहिये । उन्हें सदा स्मरण रखना चाहिए कि स्त्री-सम्भोग ही सब रोगों की जड़ है। जब विषय इच्छा उत्पन्न हो तब ठंडे पानी से स्नान कर लेना चाहिये इससे शरीर के अंदर की महाग्नि शान्त पड़ जायगी और इसका परिणाम स्त्री-पुरुषों के लिए उपकारी होगा। यह काम कठिन है परन्तु कठिनाइयों