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अपने पिछले कुकर्मों के फल से मुझे अच्छी शिक्षा मिली है और अब वर्तमान एवं भविष्य में अपने खजाने को संचित करने का बराबर प्रयत्न कर रहा हूँ और उससे बहुत लाभ उठा रहा हूँ। मेरा भी व्याह बचपन ही में हो गया था और कम उम्र में ही मैं कुछ बच्चों का पिता बन बैठा था, लेकिन जब मैंने अपनी परिस्थिति पर विचार किया तो अपने को बहुत ही भीषण एवं पतित अवस्था में पाया। यदि पाठकों में से एक ने भी इस पुस्तक से लाभ उठाया तो मैं सममूंगा कि इस पुस्तक के लिखने का मुझे उचित पुरस्कार मिल गया है। बहुत से लोगों का यह कहना है और मेरा भी विश्वास है कि मेरा मस्तिष्क कमजोर नहीं है और मेरे अन्दर पूरा उत्साह है कुछ लोग तो मुझे हठी तक कहने में संकोच नहीं करते। मेरा मस्तिष्क और शरीर दोनों नोरोग हैं; लेकिन जब मैं अपने मित्रों के साथ अपनी तुलना करता हूँ तो अपने को पूर्ण स्वस्थ कह सकता हूँ। अब बीस वर्ष तक विषय भोग के पश्चात् मैं अभी इतना स्वस्थ हूँ, यदि उन बीस वर्षों में भी मैं विषय-वासना से वंचित रहता तो आज कितना स्वस्थ होता । यह मेरा पूर्ण विश्वास है कि यदि उन दिनों मैंने पवित्र-जीवन व्यतीत किया होता तो इस समय से हजार गुना अधिक स्वस्थ और उत्साही होता और इस तरह अपने भाइयों को, अपने को और देश को कुछ अधिक लाभ पहुंचा सकता । जब मुझ जैसे साधारण व्यक्ति की यह हालत है तो जो मनष्य अखण्ड ब्रह्म वयं का पालन करेगा उसका मस्तिष्क, शरीर और उसके अवयवों का कितना विकास होगा।
जब ब्रह्मचर्य के नियम इतने कठिन हैं तो उन लोगों के विषय में क्या कहा जा सकता है जो सदैव स्वा-संभोग करने के अपराधी हैं । वेश्या तथा पराई स्त्री पर कलुषित विचार रखने से बहुत बुरा परिणाम होता है। इसका विचार आरोग्य सम्बन्धी