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मेहूँ, बादाम, मूंगफली और आरारोट से बनाया जा सकता है। इससे स्वास्थ्य भी सुधर सकता है।
दूसरा विचारणीय प्रश्न यह है कि हमें दिन भर में कितना और कितनी बार खाना चाहिए । इस महत्त्वपूर्ण विषय का उल्लेख : हम आगे चलकर करेंगे।
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६-भोजन की मर्यादा भोजन के परिमाण विषय में डाक्टरों की राय में भिन्नता पाई जाती है । एक डाक्टर का कहना है कि अपनी इच्छानुसार खूब खाना चाहिए । इसने गुणों के अनुसार भोजन की मात्रा भी बना दी है। दूसरे को यह राय है कि मजदूर और दिमागी काम करने वालों के भोजन का औसत और गुण अलग अलग होना चाहिए । तीसरे डा० को राय है कि धनी और मजदूर दोनों को समान भोजन मिलना चाहिए। यह सभी स्वीकार करेंगे कि कमजोर मनुष्य बलवान की तरह नहीं खा सकता है। इसी तरह एक स्त्री एक पुरुष की अपेक्ष कम भोजन करती है
और बच्चे तथा बूढ़े नौजवानों से कम खाते हैं। एक लेखक का यहाँ तक कहना है कि यदि हम लोग भोजन को इस तरह कुचलें कि वह अच्छी तरह लार में मिल जाय, तो हम ५ से १० तोले पर अपना गुजर कर सकते हैं। वह अपने अनुभवों के आधार पर यह कहता है, और उसकी इस विषय की पुस्तकों की हजारों प्रतियाँ बिक चुकी हैं। यह देखते हुए भोजन का वजन बताना उचित प्रतीत नहीं होता है।
अधिकांश डाक्टरों का कहना है कि ९९ प्रतिशत मनुष्य जरूरत से अधिक खाते हैं। यह प्रति दिन के अनुभव की बात है,