Book Title: Swasthya Sadhan
Author(s): Mohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
Publisher: Gandhi Granthagar Banaras

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Page 55
________________ इस तरह के अपने गन्दे बनाव को शृङ्गार समझती हैं और पैसा पानी की तरह बहाती हैं। ऐसा करके अपनी जान को खतरे में डालते वे कुछ भयभीत नहीं होतीं, हम लोग अभिमान के कारण मूर्ख बन बैठे हैं, ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं कि कितना ही स्त्रियाँ कानों में फोड़ा हो जाने पर भी अपनी बालियाँ नहीं उता. रती। फोड़ों से हाथ पक जाने पर भी जेवर नहीं उतारती यद्यपि उनकी अंगुलियाँ सूज जाती है फिर भी वे अंगूठयों को इस ख्याल से नहीं उतारती कि उनकी सुन्दरता में कुछ कमी आ जावेगी। पहिनाव में पूर्ण सुधार करना साधारण बात नहीं लेकिन कम-से-कम हम सभी के लिए यह मुमकिन है कि अपने सब गहने और अनावश्यक पहनावे को छड़ दें रीति-रिवाज के लिये उनमें से कुछ का प्रयोग कर सकते हैं और शेष को अलग कर सकते हैं जिनकी यह धारणा है कि ये सब पहिनावे केवल दिखावा-मात्र हैं वे अपने पहिनावे में बहुत कुछ पारवर्तन कर सकते हैं और ऐसा कर अपने को स्वस्थ रख सकते हैं आजकल अधिकतर लोगों का यह ख्याल हो गया है कि अपनी प्रतिष्ठा और सुन्दरता के लिए अंग्रेजी ढंग की पोशाक आवश्यक है। इस विषय पर यहाँ तक करने का स्थान नहीं है . यहाँ पर इतना ही कह देना काफी है कि अग्रेज लं'गों की पोशाक उनके ठण्डे मुल्क के लिए भले ही उपयुक्त हो, लेकिन वह हिन्दुस्तान के लिए बेकार है। चाहे हिन्दू हो या मुसलमान, उनके लिए हिन्दुस्तानी पोशाक ही स्वास्थ्यकर होती है। हम लोगों का वस्त्र ढीला और खुला होता है अतः हमारे शरीर में हवा के प्रवेश करने में कोई अड़चन नहीं होती। काले कपड़ों में सूर्य की गर्मी रुक जाने से वह गर्म रहता है और शरीर को भी गर्म रखता है। सिर को पगड़ो से ढके रहना हमारे लिए एक साधारण बात हो गई है। जहाँ तक सम्भव हो सिर को खुला

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