Book Title: Swasthya Sadhan
Author(s): Mohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
Publisher: Gandhi Granthagar Banaras

View full book text
Previous | Next

Page 57
________________ ऐसी बात नहीं लिखी गई है जिसका मैंने स्वयं अनभव न किया हो अथवा जिस पर मेरा विश्वास न हो। स्वास्थ्य के बहुत से नियम हैं जिनकी आवश्यकता भी है। इनमें ब्रह्मचर्या का सबसे ऊँचा स्थान है। इसमें कोई शक नहीं कि स्वास्थ्य के लिए स्वच्छ फल, स्वच्छ वायु तथा पौष्टिक भोजन आवश्यक है, लेकिन अगर हम अपने सब संचित बल का नाश कर दें तो हम कैसे स्वच्छ रह सकते हैं । यदि हम अपना उपार्जन किया हुआ सब धन व्यय कर दें तो किस तरह धन संचय कर सकते हैं ? इसमें कोई सन्देह नहीं कि जब तक स्त्री और पुरुष ब्रह्मचर्य व्रत धारण नहीं करेंगे कदापि स्वस्थ्थ नहीं रह सकेंगे। ब्रह्मचर्य का क्या अर्थ है ? इसका यही अर्थ है कि पुरुष स्त्री का और स्त्री पुरुष का भोग न करें। वे एक दूसरे को इस अभिप्राय से स्पर्श न करें, जिससे मन में विकार उत्पन्न हो । इन्हें इन्द्रियों को दमन करके उस शक्ति की रक्षा करनी चाहिये जिसे ईश्वर ने हमें प्रदान किया है। हमें ऐसा करके अपनी शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्तियों का विकास करना चाहिये। लेकिन प्रति दिन हम क्या हश्य देखते हैं ? हम यही देखते हैं कि स्वी, पुरुष, वृद्ध और युवा सभी कामान्ध हो रहे हैं जिसके कारण वे उचित अनचित का विचार खो बैठे हैं। हमें यहाँ तक देखने में आता है कि छोटे छोटे बालक और बालिकायें भी इस कुटेव में पड़ कर पागल हो रही हैं। मैं स्वयं इसके फेर में पड़ चुका हूँ। एक क्षण की तृप्ति के लिए हम अपने पूर्वसंचित बल को खो देते हैं और ज्यों ही इस भूल की छूत दूर हो जाती है, हम अपने का बुरी दशा में पाते हैं। दूसरे दिन सुबह हमें कमजोरी और सुस्ती मालूम होने लगती है और किसी काम के करने को जी नहीं चाहता। तब हम अपनी कमजोरी को दूर करने के लिए औषधियों का आश्रय लेते हैं। इसी तरह हमारे दिन व्यतीत

Loading...

Page Navigation
1 ... 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117