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मानसिक होने के कारण व्यायाम नहीं कहा जा सकता है पाश्चात्य देशों में ऐसे लोगों के लिये क्रिकेट, फुटबाल या ऐसे ही छोटे छोटे खेलों का प्रबन्ध किया गया है । मानसिक व्यायाम के लिए किताब इत्यादि पढ़ने का प्रबन्ध किया गया है। ऐसे खेल शारीरिक व्यायाम के लिए कुछ अंश में उपयुक्त हो सकते हैं । लेकिन इनमें मानसिक व्यायाम नहीं होता । इन खिलाड़ियों में से कोई भी अपने मानसिक व्यायाम के लिए विख्यात नहीं हो सका है। कितने ही हिन्दुस्तानी राजकुमार अपने खेल की कला में विख्यात हो गये हैं । हम अपने अनुभव से कह सकते हैं कि ऐसे खिलाड़ियों में मानसिक ताकत नहीं होती । इङ्गलैण्ड के लोग ऐसे खेलों के बहुत प्रेमी होते हैं । लेकिन इन्हीं लोगों का किपलिंग नामक एक कवि उनके मस्तिष्क की शिकायत करता ।
हम हिन्दुस्तानियों का ढंग ही निराला है। हम में से बहुत कठिन मानसिक परिश्रम करते हैं परन्तु शारीरिक व्यायाम की ओर ध्यान ही नहीं देते उनका शरीर मानसिक परिश्रम के कारण कमजोर पड़ जाता है, और वे अनेक रोगों के शिकार बन जाते हैं । यहीं तक नहीं बल्कि जब संसार उनसे कुछ उपयोगी कामों की आशा करता है, तब वे असमय में ही इस संसार से उठ जाते हैं । हम लोगों के दोनों तरह के काम सीमा के अन्दर होना चाहिये। साथ ही ऐसा न होना चाहिए जिससे शारीरिक सुख की प्राप्ति हो । आदर्श व्यायाम वह है, जिससे शरीर एवं मस्तिष्क दोनों को लाभ पहुँचता हो । केवल ऐसा ही व्यायाम मनुष्य को स्वस्थ बना सकता है, और ऐसा ही मनुष्य सच्चा किसान हो सकता है ।
लेकिन यह प्रश्न हो सकता है कि जो किसान नहीं हैं, वे क्या करें ? क्रिकेट के खेल का व्यायाम उपयुक्त नहीं है । किसी दूसरे व्यायाम की व्यवस्था करनी चाहिए । साधारण आदमियों