Book Title: Swasthya Sadhan
Author(s): Mohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
Publisher: Gandhi Granthagar Banaras

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Page 44
________________ बनी हुई चीजों की भी कोई आवश्यकता नहीं है । मढे की जगह खट्टे निम्बू का रस और घी के जगह तेल का प्रयोग कर सकते हैं। ___मनुष्य के शरीर की बनावट को ध्यानपूर्वक देखने से पता चलता है कि मांस मनष्य का प्राकृतिक भोजन नहीं है । डा० हेग एवं किंग्सफोर्ड ने हम लोगों पर मांस का जो बुरा प्रभाव पड़ता है-उसे साफ साफ दिखला दिया है। वे इस बात को भली प्रकार समझा चुके हैं कि मांस भी दाल की तरह हानि पहुँचाने वाली वस्तु है। इससे दाँत असमय गिर जाते हैं और दमे की बीमारी हो जाती है। इससे मनुष्य का खून उत्तेजित होकर स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है । हम पहले ही कह आये हैं कि यह भी एक प्रकार का रोग है । बड़े शर्म की बात है कि बहुत से विचारशील और बुद्धिमान शाकाहारी मनष्य इसके गुण अवगुणो को जानते हुये भी मांसाहारी बने हुये हैं । अन्त में हम इसी नतीजे पर आते हैं कि बहुत कम मनुष्य ऐसे हैं जो फलाहार पर जीवन बिताते हैं। फिर भी हम निःसंकोच कह सकते हैं कि गेहूँ और मीठा बादाम खा कर रहना बहुत आसान है। सारांश यह कि फल पर जीवन व्यतीत करने वाले लोग बहुत कम हैं। फल, गेहूँ और जैतून के तेल पर रहना बहुत लाभप्रद है फलों में केले का स्थान सर्वप्रथम है। केला सन्तरा, खजूर, अंगूर और अालूचा भी अत्यन्त पुष्टिकर हैं, और रोटी के साथ खाये जा सकते हैं। जैतून के साथ रोटी स्वादहीन नहीं होती। ऐसे भोजन में अड़चन कम है, और पैसे भी कम खचे होते हैं। इस भोजन में नमक, मिर्च, दूध और चीनी की आवश्यकता नहीं पड़ती। खाली चीनी खाना तो बहुत ही हानिकारक है। अधिक मिठाई खाने से दाँत खराब होते हैं और स्वास्थ्य पर भी इसका पुरा प्रभाव पड़ता है । अच्छा खाद्य पदार्थ

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