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बल्कि कभी-कभी बदहजमी हो जाती है । जो कठिन परिश्रम करते हैं, वे दाल हजम कर सकते हैं, और इससे लाभ उठा सकते हैं। जो अमीरी जीवन व्यतीत करते हैं, उन्हें इससे परहेज रखना चाहिये । इङ्गलैंड का एक बड़ा लेखक डा० हेग का कहना है कि दाल स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है । और पेट में एक प्रकार की एसिड पैदा करती है, जिसके कारण अनेक रोग उत्पन्न होकर शरीर को असमय वृद्ध बना देते हैं। इसके लिये दलीलें पेश करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन मैं भी उस अनुभव से सहमत हूँ । जो दाल का परित्याग नहीं कर सकते, उन्हें इसे सावधानी से खाना चाहिए।
करीब करीब सारे हिन्दुस्तान में तरह-तरह के मसाले और बघार बहुतायत से प्रयोग किये जाते हैं, जो किसी और देश में नहीं किये जाते । अफ्रीका के हब्शी लोग भी हमलोगों के मसालों से नफरत करते हैं । यदि अंग्रेज मसाले खायें, तो उनके पेट की पाचन-क्रिया बिगड़ जाती है, और उनके चेहरे पर दाग पड़ जाते हैं, जिसे मैं अपने निजी अनुभव से जानता हूँ। सच बात तो यह है कि मसाला कोई खाने की सामग्री नहीं है। लेकिन चूंकि हम लोग बहुत दिनों से इसका प्रयोग करते चले आये हैं, इसलिए उसका स्वाद हमारी इच्छा को बढ़ाता है। जैसा कि मैं पहले कह चुका हूँ कि स्वाद के लिये कोई भोजन करना हानिकारक है । तब फिर यह बात कैसे हुई कि मसाले का अधिक प्रयोग होना चाहिए । प्रायः लोग यही कहा करते हैं कि पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए मिच, धनियाँ इत्यादि का प्रयोग आवश्यक है, किन्तु इससे तो नकली भख बढ़ती है, जिसका प्रभाव शरीर पर अच्छा नहीं पड़ता। जो इन्हें अधिक खाते हैं, उन्हें बहुधा दस्त की बीमारी होती है। मुझे मालूम है कि एक युवा आदमी अधिक