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पर भूना जाय, जब तक कि वह लाल न हो जाय। उसके बाद उसे खूब महीन पीस लिया जाय। एक चम्मच मैदे को प्याले में रखकर खौलता हुआ पानी उसमें छोड़कर चन्द मिनट तक उसको
आग पर रखा जाय। उसके बाद उसमें दूध और शक्कर मिलाकर उसका प्रयोग किया जाय। यह कहवे से कहीं सस्ता, स्वादिष्ट तथा लाभप्रद होता है। जो ऐसा चूर्ण बनाने के परिश्रम से बचना चाहते हों, उन्हें अहमदाबाद के सत्याग्रह आश्रम से इसे लेना चाहिये।
भोजन के ख्याल से मानव-समाज तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है। सबसे बड़ा भाग वैष्णव ( जो मांस नहीं खाता)। इस भाग में भारत के अलावा यूरोप, जापान और चीन के भी कुछ मनुष्य हैं। इनमें कुछ धर्म के भाव से मांस खाते हैं, और कुछ यदि गिल जाय तो खशी से खाते हैं। इनमें इटालियन, आयरिस, रूस के गरीब किसान और चीन के सब मनुष्य शामिल हैं। दूसरे भाग में वे लोग हैं जो मिश्रित भोजन खाते हैं । इनमें इंगलिस्तान के पुरुष, चीन, जापान के धनी पुरुष, भारत के धनी मुसलमान और धनी हिन्दू जिन्हें मांस खाने में कोई धार्मिक अड़चन नहीं। परन्तु इस भाग में पहले भाग के बराबर मनुष्य नहीं है। तीसरे भाग में वे मनुष्य हैं जो केवल मांसाहारी हैं। वे ठंडे देश की असभ्य जातियाँ हैं इनकी संख्या अधिक नहीं है। अब ये यूरोप की सभ्य जातियों के संसर्ग में आने से अपने भोजन के साथ शाक भी खाने लगे हैं। इस तरह मनुष्य तीन प्रकार का भोजन करता है। लेकिन हम लोगों का कर्तव्य है कि इसका विचार करें कि इन तीनों में सब से अधिक स्वास्थ्यप्रद किस भाग का भोजन है।
मनुष्य की शारीरिक बनावट को देखकर यही प्रतीत होता है कि प्रकृति ने मनुष्य को शाकाहारी बनाया है। मनुष्य और फल