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देता । सभी सभ्य समाज एक झूठे चोर का बहिष्कार कर देगा; लेकिन उसका नहीं, जो अपना जीवन भोजन करने ही के लिए मान बैठा है तथा जो हद से ज्यादा भोजज करता है। चूँकि हम सभी पेट-देव के ऐसे ही उपासक हैं, अतः इसे कोई पाप नहीं समझते। जैसे एक डकैत जो डकैतों के गाँव में बसा है कभी डकैत नहीं समझा जाता । व्याह या दूसरे किसी त्यौहार के अव सर पर अच्छा और स्वदिष्ट भोजन तैयार करना हम अपना मुख्य धर्म समझते हैं, यहाँ तक कि श्राद्ध कर्मों में भी ऐसा करते नहीं संकोच करते। ऐसे मौके पर यदि कोई मेहमान आ जाता है, तो उसको मिठाइयों को भेंट करते हैं । यदि समय-समय पर हम अपने सम्बन्धियों को निमंत्रित नहीं करते हैं, या उनके यहाँ दिये गये भोज में सम्मिलित नहीं होते हैं, तो हम उनकी नजरों में गिर जाते हैं। और यदि निमंत्रित कर हम उनके आगे स्वादयुक्त भोजन नहीं रखते, तो कंजूस समझे जाते हैं। हम प्रायः ऐसी धारणा करते हैं कि छुट्टी के दिन अवश्य स्वादिष्ट भोजन बनना चाहिए। वास्तव में यह एक बड़ा पाप है इसे करने में हम अपनी बुद्धिमत्ता समझते हैं । हम अपने को ऐसी भीषण परिस्थिति से कैसे बचा सकते हैं। कम-से-कम प्रत्येक मनुष्य को स्वास्थ्य सुधार की दृष्टि से इसके ऊपर विचार करना आवश्यक है ।
इस विषय पर अब हम लोग दूसरे ढंग से विचार करें। संसार में हम देखते हैं कि प्रकृति देवो ने मनुष्य, पशु-पक्षी और कीड़े-मकोड़े सभी जीवों के लिए बहुतायत से खाद्यपदार्थ पैदा किया है । यह प्रकृति का अनादि नियम है कि उसके राज्य में सब काम नियम बद्ध होते हैं। न तो वह कभी सोती है न अपने नियम से विचलित होती है, और न उसमें आलस्य है । उसके सभी काम छोटे या बड़े नियमानुसार होते रहते हैं । यदि हमलोग अपने जीवन को प्रकृति के नियमानुसार बनावें तो हमें