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शरीर ही से किये जा सकते हैं, तथा करने आवश्यक हैं, अतः उसे कायम रखने के लिए भोजन करना आवश्यक है। पहलवान लोग भी इसे स्वीकार करते हैं कि हमें उतना ही भोजन करना चाहिए जितना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद हो। . ___ अब पशु और पक्षियों का जीवन देखिये । वे कभी स्वाद के लिए नहीं खाते और न इतना अधिक भोजन ही करते हैं, कि उनका पेट फटने लगे। वे केवल अपनी भूख मिटाने भर ही खाते हैं । जो कुछ प्रकृतिदेवी उन्हें देती है, वे वही खाते हैं वे अपना भोजन पकाते नहीं हैं। क्या यह सच हो सकता है कि केवल मनुष्य ही पेट की उपासना करे ? क्या यह सच है कि ऐसा कर केवल मनुष्य ही सदा रोगों का शिकार बने ? वे पशु-पक्षी जो स्वतंत्रता-पूर्वक विचरते हैं, कभी भूख से नहीं मरते। उनके लिए स्वादिष्ट तथा रूखा-सूखा भोजन में कोई अन्तर नहीं है वे जीव . जो दिन में कई बार भोजन करते हैं और वे जीव जिन्हें एक बार भी कठिनता से भोजन मिलता है- केवल मानव-समाज ही में मिलते हैं। फिर भी हम मनुष्य अपने जीवन को उत्तम समझते हैं । वास्तव में वे मनुष्य जो अपना समय केवल पेट-पूजा ही में गवाते हैं, उन पशु-पक्षियों से कहीं बदतर हैं। __ ध्यानपूर्वक विचार करने से हम इसी परिणाम पर पहुँचते हैं कि सभी तरह के पाप, झूठ बोलना, ठगना, चोरी करना इत्यादि सब पेट-देव की भेंट ही के लिए किए जाते हैं। केवल वे ही मनुष्य अपने इन्द्रियों को वश में कर सकते हैं, जो अपनी जिह्वा को स्वादिष्ट भोजन से वंचित रखते हैं। यदि हम लोग झूठ बोलें, चोरी करें, ठगपन करें तो समाज की दृष्टि में घृणित समझे जाते हैं, लेकिन जो सर्वदा स्वादिष्ट भोजन के पीछे पड़े रहते हैं, उनकी ओर कोई ध्यान नहीं देता। पेट-देव के लिए आज तक जो भी घृणित कार्य किये जा रहे हैं, उनकी ओर कोई ध्यान नहीं
चोर भी हैं। फिर भी जो अपना बदतर है