Book Title: Suri Viharadarsh Ane Tharadni Prachinta
Author(s): Hansvijay
Publisher: Rajendra Jain Seva Samaj

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जयतु जयतु लोके श्रीलराजेन्द्रमोरहरतु हरतु तापं देहिनां क्लेश भाजाम् । नदतु नदतु वाघ तद् यशोदुन्दुभीनां, जपतु जपतु तस्या ऽs रव्यां सदा भव्यलोकः ॥ १ ॥ द्रुतमयमुपदेशाद् धन्य-भूपेन्द्रमूरे-- बहतु बहतु भारं श्राद्ध वृन्दोन्नते। चलतु चलतु नित्यं पूज्य-राजेद्रमूरे थिरपुर नगरे 5 सा जैन- सेवा-समाजः ॥ १ ॥ (३) संसारफल्गुमवधायै निवार्य पापं, या ऽ पालयविमलसंयममात्म शुद्धः। आचार्य-सद्गुण-निधि-बहु शास्त्र विज्ञः, सनामि तं सविजयं धनचंद्रमूरिम् ॥ ॥१॥ जयतु जयतु गच्छे साधु साध्व्यादि-सङ्कमिह-निज-निज-धर्मे योजयन्सारणा धैः। सतत-भवतु पापात्सर्वतो देहिनां स, विचरतु भुविमा दात्पूज्य भूपेन्द्रमरिः ॥१॥ For Private And Personal Use Only

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