Book Title: Suri Viharadarsh Ane Tharadni Prachinta
Author(s): Hansvijay
Publisher: Rajendra Jain Seva Samaj

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 3 ) सूरिविहारादर्श-संक्षिप्तपरिचयप्रदर्शक मत्तगयन्द-सवैया । सूरिविहारादर्श रुचिरलुक बाँचलो सजन प्रेमें विचारी, अदमुनिए भूपेन्द्रसूरि उपकार कियो गामोगाम पधारी । अमदावाद-सिद्धाचल-उजिंत-पाटण-यात्रा करि जयकारी, प्राप्त कियो जश पूर्ण सूरीसर चातुरमासे थराद सुधारी ॥ सुउपदेश सुनी मूरिको तभी संघ थराद सुवात विचारी, राजेन्द्रजैनसुसेवासमाजकी संस्था करि दोय शाखा है न्यारी। पाठशाला लायब्रेरी में बांचलो कहुं नहीं अहीं बात वधारी, सूरिविहार-थराद प्राचीनता पुस्तकसे मन्नालाल लोधारी. वाचनालय (लायब्रेरी) से सुलाभ-परिचयः उपजाति-छन्दःसंमुश्चता भो ! निजमत्यबोधक मधीयतां धार्मिक-पौस्तकं सदा । भूपेन्द्र-संस्थापित वाचनालयमलङ्करोतु प्रपठन् मुदा हृदा ।। १ ।। For Private And Personal Use Only

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