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सूरिविहारादर्श-संक्षिप्तपरिचयप्रदर्शक
मत्तगयन्द-सवैया । सूरिविहारादर्श रुचिरलुक बाँचलो सजन प्रेमें विचारी,
अदमुनिए भूपेन्द्रसूरि उपकार कियो गामोगाम पधारी । अमदावाद-सिद्धाचल-उजिंत-पाटण-यात्रा करि जयकारी, प्राप्त कियो जश पूर्ण सूरीसर चातुरमासे थराद सुधारी ॥ सुउपदेश सुनी मूरिको तभी संघ थराद सुवात विचारी,
राजेन्द्रजैनसुसेवासमाजकी संस्था करि दोय शाखा है न्यारी। पाठशाला लायब्रेरी में बांचलो कहुं नहीं अहीं बात वधारी, सूरिविहार-थराद प्राचीनता पुस्तकसे मन्नालाल लोधारी.
वाचनालय (लायब्रेरी) से सुलाभ-परिचयः
उपजाति-छन्दःसंमुश्चता भो ! निजमत्यबोधक
मधीयतां धार्मिक-पौस्तकं सदा । भूपेन्द्र-संस्थापित वाचनालयमलङ्करोतु प्रपठन् मुदा हृदा ।। १ ।।
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