Book Title: Suri Viharadarsh Ane Tharadni Prachinta Author(s): Hansvijay Publisher: Rajendra Jain Seva Samaj View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१) 55555555555555555 + श्रीसल-प्रेमपुष्पाञ्जलयः । इन्द्रवजा-छन्दः । श्रीमत्सुवन्योऽप्यनिशं च यो भू पेशेर्नुतो मानवकञ्जचन्द्र ! सूरस्तमोऽज्ञानविनाशकारी, श्वाश्रेयसं संकुरुतात्स धीरः ॥ १॥ अनुष्टुप् छन्दः । श्रीमद्राजेन्द्रसूरीशैः, प्राप्तज्ञानादिसम्पदे । धनेन्दोः पट्टकेशाय, नमो भूपेन्द्रसूरये ॥ १॥ सूरेः श्रीधनचन्द्रस्य, पट्टालङ्कारकाय वै ।। गम्भीरोदारधीराय, नमो भूपेन्द्रसूरये ॥ २॥ गनोदकं स्वभावेन, हंसः कीर्त्या सुधा गिरा। : भूयामः मूरिभूपेन्द्रो, मङ्गलानन्ददायकः ॥३॥ यो विद्याभूषणः प्रज्ञः, सत्साहित्यविशारदः । स नन्द्यात्मरिभूपेन्द्रः, श्रीसङ्घनन्दने वने ॥४॥ मत्तगयन्द ( सवैया ) तालभोपाल हि जन्म भयु भगवानजि तात सरस्वती माई, जोग लियू अलिराजपुरे मरिराज हुए पुर जावरे आई। जन्म चवालीस दिवख ली बावन अक्षय तीज हुई सुखदाई, अस्सि हि जेठ दुजे शुदि आठम भूविंद सूरीश नाम थपाई ॥१॥ For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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