Book Title: Samyaggyanchandrika
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 15
________________ सम्यानचन्द्रिका पीठिका बहुरि कोऊ कहै कि इस कार्य विर्षे विशेष हित. हरे है सो सत्य, परंतु मंदबुद्धि तें कहीं भूलि करि अन्यथा अर्थ लिखिए, तहां मह्त् पाप उपजने ते अहित भी तो होइ ? ताकौं कहिए है - यथार्थ सर्व पदार्थनि का ज्ञाता तो केवली भगवान हैं। औरनि के ज्ञानावरण का क्षयोपशम के अनुसारी ज्ञान है, तिनिकौं कोई अर्थ अन्यथा भी प्रतिभासै, परंतु जिनदेव का ऐसा उपदेश है: - कुदेव, कुगुरु, कुशास्त्रनि के वचनाकी प्रतीति करि वा हठ करि वा क्रोध, मान, माया; लोभ करि का हास्य, भयादिक: करि जो अन्यथा श्रद्धान. करै वा उपदेश-देइ, सो-महापापी है । पर विशेष ज्ञानवान गुरु के निमित्त बिना, वा अपने विशेष भयोपशम बिना कोई सूक्ष्म अर्थः अन्यथा प्रतिभास पर यहु ऐसा जाने कि जिनदेव का उपदेश ऐसे ही है, ऐसा जानि कोई सूक्ष्म अर्थ कौं अन्यथा श्रद्धे है वा उपदेश दे तो याकौं महत् पाप न होइ । सोइ इस ग्रंथ विय भी प्राचार्य करि कहा है - सम्माइट्ठी जोवो, उपइट्ठ पवयणं तुः सद्दहदि । सद्दहदि असम्भावं, प्रजारामाणो गुरुरिणयोगा ॥२७॥ जीवकांड ।। बहुरि को कहै कि - तुम विशेष ज्ञानी ते ग्रंथ का यथार्थ सर्व अर्थ का निर्णय करि टीका करने का प्रारंभ क्यों न कीया ? ताकौं कहिये है - काल दोष तें केवली श्रुतकेवली का तौ इहां अभाव ही भया । बहुरि विशेष ज्ञानी भी विरले पाइए । जो कोई है तो दुरि क्षेत्र विर्षे हैं, तिनिका संयोग दुर्लभ । पर आयु, बुद्धि, बल, पराक्रम प्रादि तुच्छ रहि गए: । ताते जो बन्या सो अर्थ का निर्णय कीया, अवशेष जैसे है तैसे प्रमाण हैं। बहुरि को कहै कि - तुम कही सो सत्य, परंतु: इस ग्रंथ विर्षे जो चूक होइगी, ताके शुद्ध होने का किछु उपाय भी है ? . ताकौं कहिये है - एक उपाय यहु कीजिए है. - जो विशेष ज्ञानवान पुरुधनि का प्रत्यक्ष तौ संयोग नाहीं, तातै परोक्ष ही तिनिस्यों ऐसी बीनती करौ हौं कि मैं मंद बुद्धि हौं, विशेषज्ञान रहित हौं, अविवेकी हौं, शब्द, न्याय, गणित, धार्मिक आदि ग्रंथनि का विशेष अभ्यास मेरे नाहीं हैं, तातो शक्तिहीन हों; तथापि धर्मानुराग के वंश से टीका करने का विचार कीथा, सो यतः विर्षे जहां-जहां चूक होइ, अन्यथा अर्थ होई, तहां-तहां मेरे ऊपरि क्षमा करि तिस अन्यथा अर्थ की दुरि करि यथार्थ अर्थ लिखना ऐसे विनती करि जो चूक होइगी ताके शुद्ध होने का उपाय कीया है। ___बहुरि कोऊ कहै कि तुम टीका करती विचारी सो तो भला कीया, परंतु ऐसे महान ग्रंथनि की टीका संस्कृत ही चाहिये । भाषा विष याकी गंभीरता भास नाहीं।

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