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[सामान्य करा
बहुरि कोऊ कहे कि - अनुराग है तो अपनी बुद्धि अनुसार ग्रंथाभ्यास करो, ifafa harer करने का अधिकारी होना युक्त नाहीं ।
ता कहिये है जैसे किसी शिष्यशाला विषे बहुत बालक पढ़ें हैं । तिनिविषै कोऊ बालक विशेष ज्ञान रहित हैं, तथापि अन्य बालकनि तैं अधिक पढ़ा है, सो आप थोरे पढ़ने वाले बालकनि कौं अपने समान ज्ञान होने के अर्थि किछू लिखि देना श्रादि कार्य का अधिकारी हो है । तैसे मेरे विशेष ज्ञान नाहीं, तथापि काल दोष ते मोतें भी मंदबुद्धि हैं, पर होंहिगे । तिनिकै मेरे समान इस ग्रंथ का ज्ञान होने के अथ टीका करने का अधिकारी भया हो । बहुरि कोऊ कहें कि यह कार्य करना तो विचारचा, परन्तु जैसे छोटा मनुष्य बड़ा कार्य करना विचारे, तहां उस कार्य विषं चूक होई ही, तहां वह हास्य कीं पात्र है। तुम भी मंदबुद्धि होय, इस ग्रंथ की टीका करनी विचारी हों सो चूक होगी, तहां हास्य को पावोगे ।
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ता कहिये है यह तो सत्य है कि मैं संदबुद्धि होइ ऐसे महान ग्रंथ की टीका करनी विचास हौं, यो चूक तो हो, परन्तु सज्जन हास्य नाहीं करेंगे । जैसे श्रीरनि ते अधिक पढ़या बालक कहीं भूले तब बड़े ऐसा विचार हैं कि बालक है, भूल ही भूल, परंतु और बालकनि तै भला है, ऐसे विचारि हास्य नाहीं करे हैं । तैसे मैं इहां कहीं भूलोंगा तहां सज्जन पुरुष ऐसा विचारेंगे कि मंदबुद्धि था, सो भूल ही भूले, परंतु केलेइक श्रुतिमंदबुद्धीनि तं भला है, ऐसे विचारि हास्य न करेंगे । करेंगे, परन्तु दुर्जन तो हास्य करेंगे ?
सज्जन तो हास्य न ताकौं कहिये है कि
दुष्ट तो ऐसे ही हैं, जिनके हृदय विषै औरनि के निर्दोष भले गुण भी विपरीतरूप ही भासे । सो उसका भय करि जायें अपना हित होय ऐसे कार्य को कौन त करेगा ?
बहुरि कौक कहै कि - पूर्व ग्रंथ थे ही, तितिका अभ्यास करने करावने ते ही हित हो है, मंदबुद्धि करि ग्रंथ की टीका करने की महतता काहेको प्रगट कीजिये ? ता कहिये है कि ग्रंथ अभ्यास करते ते ग्रंथ की टीका रचना करने विषै उपयोग विशेष लाई है, अर्थ भी विशेष प्रतिभ्रास है । बहुरि अन्य जीवनि को प्रथ अभ्यास कराव का संयोग होना दुर्लभ है। घर संयोग होइ तो कोई ही जीव के अभ्यास होइ । श्रर ग्रंथ की टीका बने तो परंपरा अनेक जीवति के अर्थ का ज्ञान होइ । ता अपना र अन्य जीवनि का विशेष हित होने के साथ टीका करिये है, मतता का तो कछू प्रयोजन नाहीं ।