Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
नवीन और प्राचीन दोनों विचारों के प्रतिनिधि अत्यन्त योग्य समझ कर गतवर्ष उपाध्याय पद से विभूषित किया। रुचिपूर्वक आपके प्रवचनामृत का पान करते थे।
उपाध्याय पद आपकी योग्यता का परिचायक है "रत्नं आप इस श्रमणसंघ के एक वरिष्ठ नेता के रूप में समागच्छतु कांचनेन" इस न्याय से यह पद आपके लिए थे, फिर भी आप श्रमणसंघ के प्रत्येक छोटे से छोटे सदस्य स्वर्णमणि संयोग है। की समस्याओं को ध्यानपूर्वक सुनते और सुलझाने का . आपके आध्यात्मिक पक्ष की झांकी भी काफी समुन्नत प्रयत्न करते थे। मैंने देखा कि आप में बहुत बड़ी लगन और सुरुचिपूर्ण है। पिछले वर्षों में आपकी आध्यात्मयोग और तड़फन थी, श्रमणसंघ के लिए कुछ करने की । वही की साधना इतनी तीव्र हो गयी है कि आपका प्रशस्त तड़फन और लगन आज भी मैं आप में देख रहा हूँ, श्रमण ध्यान, जप-तप, साधना, मौन आदि केवल स्वकल्याण के संघीय उपाध्याय पद पर आसीन होने पर भी।
लिए ही नहीं, जन-जन के कल्याण के साधक बन चुके हैं । उसके बाद तो नाथद्वारा, उदयपुर आदि क्षेत्रों में कई आपकी वाणी में जैसा चमत्कार है, वैसा ही आपकी दृष्टि, प्रसंगों पर आपसे मिलने और विचार-विमर्श करने का आपके वरदहस्त के स्पर्श और आपके मनःसंकल्प में सिलसिला जारी रहा । जब भी, जहाँ भी आप मिले, आपने चमत्कार है। मुझ पर अपना वरदहस्त रख कर अपना अमूल्य आशीर्वाद मैं परम कृपालु वीतरागदेव से करबद्ध प्रार्थना करता प्रदान किया । जीवन में प्रगति के द्वार खोलने और अपना है कि आप चिरकाल तक दीर्घायु एवं स्वस्थ रहकर अपने संयमनिष्ठ व्यक्तित्व बनाने की प्रेरणा दी।
यशस्वी जीवन की सौरभ जनता में प्रसारित करें और यही कारण है कि आपको श्रमणसंघ के वरिष्ठ नायक आपका तेजस्वी जीवन संघीय उन्नति के साथ-साथ जनता महामहिम आर्चायप्रवर श्री आनन्दऋषिजी महाराज ने की आध्यात्मिक उत्क्रान्ति में संलग्न रहे।
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मधुर जीवन
- पं० श्री इन्द्रमुनि जी महाराज 'मेवाड़ी' उपाध्याय राजस्थानकेसरी अध्यात्मयोगी श्री पुष्कर मुनि जी व देवेन्द्र मुनि जी दोनों वैराग्यावस्था में थे। मुनि जी महाराज मधुरता के साकार स्वरूप हैं । आपका बाल-सुलभ चंचलता के कारण गुरुदेव ने मुझे दीक्षा प्रदान शान्त-दान्त-प्रशान्त स्वभाव है। आपका व्यक्तित्व और नहीं की और मैंने मेवाड़भूषण पूज्य प्रवर मोतीलाल जी कृतित्व इतना मधुर है कि उस मधुरता के समक्ष मधु की महाराज की सेवा में दीक्षा ग्रहण की, पर मुझे सदा यह मधुरता भी फीकी पड़ जाती है और शक्कर की मिठास आल्हाद होता रहा कि जब भी आप के दर्शनों का भी हतप्रभ हो जाती है। यदि अमृत भी आपके माधुर्य सौभाग्य मुझे मिला तब भी आपने अपने प्रिय शिष्य की समकक्षता करना चाहे तो उसे भी पराजय ही स्वी- की तरह मुझे प्यार दिया। कभी भी आपके मन में यह कार करनी होगी। गीर्वाण गिरा के यशस्वी कवि ने सत्य विचार नहीं आया कि मैंने वहाँ क्यों दीक्षा ली। कभी मैंने ही कहा है कर्मयोगी श्री कृष्ण से सम्बन्ध में-
मजाक के रूप में नम्रनिवेदन भी किया तो आपने यही अधरं मधुरं, वदनं मधुर, नयनं मधुरं, हसितं मधुरं । फरमाया कि पूज्य श्री मोतीलालजी महाराज भी हमारे ही हृदयं मधुरं, गमनं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ हैं, वहाँ रहो, चाहे यहाँ रहो, उसमें कोई फर्क नहीं वचनं मधुरं, चरितं मधुरं, वसनं मधुरं, बलितं मधुरं। पड़ता । तुम्हें मुनि श्री के चरणों में रहकर अपना विकास चलितं मधुरं, भ्रमितं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥ करना है । दाँत मुह में रह करके ही शोभा पाते हैं, मुह
जैसे कृष्ण का प्रत्येक कार्य मधुर था। वह आल्हाद से निकलने के बाद नहीं । यह है आप श्री के विराट् हृदय उत्पन्न करने वाला था वैसा ही श्रद्धेय सद्गुरुवर्य का की मधुरता का पुनीत प्रतीक । जीवन भी मधुरता से ओत-प्रोत है।
___ आपकी असीम कृपा मेरे पर सदा रही है और सदा मैंने सर्वप्रथम आप श्री के दर्शन वि० सं० १९६५ रहेगी, इसमें किंचितमात्र भी शंका नहीं है । आप श्री अपनी में किये थे। सद्गुरुणी जी श्री सज्जनकुवर जी महाराज असीम विशेषताओं के कारण ही जन-जन के मन में बसे तथा श्रेष्ठी प्रवर नाथुलालजी परमार का मैं आभारी हुए हैं। श्रद्धय सद्गुरुदेव के श्री चरणों में मेरा कोटिहूँ जिनकी प्रेरणा से ही मैं सद्गुरुदेव की सेवा में वैराग्या- कोटि वन्दन और अभिनन्दन है । आपकी पवित्र छत्रछाया वस्था में रहा । उस समय आप श्री की सेवा में श्री हीरा सदा मेरे लिए वरदान रूप रहे ।
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