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प्राक्कथन
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/ इन दो-दो महा-वज्राघातों के प्रहारों की पारिवारिक, व्यावसायिक, आश्रमिक, वैयक्तिक एवं संस्थाकीय अनेकविध आपदाओं, अग्निपरीक्षाओं, प्रतिकूलताओं और अप्रत्याशित चुनौतियों के बीच मेरे दो ही सम्बल थे - दूर गुजरातस्थ पूज्य पंडितजी एवं निकट हंपी स्थित गुरुदेव की उत्तर साधिका जगत्माता आत्मज्ञा पूज्या माताजी : पंडितजी समयोचित तलस्पर्शी पत्र-परामर्शों के द्वारा एवं माताजी प्रत्यक्ष वात्सल्य एवं सांत्वनापूर्ण सतत पथ-प्रदर्शनों द्वारा।
वास्तव में व्यावहारिक-पारिवारिक एवं पारमार्थिक जीवन में इन दो-दो महावज्रप्रहारों से सब कुछ विपरीत हो गया था। सारी पूर्वायोजित व्यवस्थाएँ और आयोजनाएँ उलटकर ठप्प हो गईं थीं। बेंगलोर-हंपी दोनों स्थानों पर विपदाओं, समस्याओं, अग्नि-परीक्षाओं का ढेर लग चुका था। एक ओर से “प्रतापभाई, प्रतिकूलताओं को अनुकूलताएँ समझें" कहती हुई गुरुदेव की प्रेरणा-वाणी अतीत के अंतराल से सुनाई दे रही थी, तो दूसरी ओर से जीवनभर ऐसी ही पारावार प्रतिकूलताओं के बीच से पले हुए पंडितजी की स्वयं की करुणतम जीवनगाथा पुरुषार्थ को - स्वयं के पुरुषार्थ को जगाने की प्रत्यक्ष प्रेरणा दे रही थी।
Vपरिणामतः प्रतिकूलताओं की कतारों को तो मैं पार करता चला, पारिवारिक समस्याओं के संघर्षों को झेलता रहा और इन्हीं विपदाओं के बीच से भी नूतन निर्माणों को साकार करता रहा - भस्म में से सर्जन करनेवाले फिनिक्स पंछी की भाँति। वीतरागवाणी विश्वभर में भर देने के गुरु-आदेश का प्रथम चरण गुरुकृपा से बना आत्मसिद्धि शास्त्र', भक्तामर स्तोत्र, महावीरदर्शन आदि रिकार्ड-श्रृंखलासंगीत का निर्माण और कुछ ग्रंथ-पुस्तिकाओं का सृजन । 'सप्तभाषी आत्मसिद्धि' का संपादन-प्रकाशन कार्य भी अभी अधूरा और हंपी आश्रम के ट्रस्टी गुरुबंधुओं के ही अंतरायों के कारण रुका रहा था, जो बाद में पंडितजी की प्रेरणा से विदुषी विमलादीदी ने पूर्ण करवाया, जिसका लंबा इतिहास है। विश्वविद्यालय-निर्माण का कार्य, कि जिसका हंपी आश्रम के ट्रस्ट के संविधान में मैंने ही साग्रह समावेश किया था, अभी तो विद्यालय के पूर्व-रूप-समान, तरुतलों और गुफाओं में हंपीमें प्रतिकूलताओं के बीच भी समय-समय पर आयोजित शिबिरों और ध्यान-साधन बैठकों तक ही सीमित रहा है। इसी बीच फिर २ मार्च १९७८ को पूज्य पंडितजी का महाप्रयाण, १९७९ में अपनी पूज्या माँ का प्रयाण, १९८८ में मेधावी, प्रज्ञावान ज्येष्ठा सुपुत्री कु. पारुल का भी मार्ग-दुर्घटना में असमय युवावस्था में प्रयाण, फिर