________________
दोनों कल्याणकारी : जीवन और मृत्यु
१२९
उससे कहीं अधिक मनुष्यों के हृदय में गांधीजी के जीवन ने स्थान प्राप्त किया था । इस प्रकार के स्थान के कारण ही लोगों ने उन्हें महान आत्मा - महात्मा कहा और उनका जीवन महत् माना गया ।
अतीत के इतिहास में या नवयुग के इतिहास में ऐसा कोई भी उदाहरण है जिसमें किसी व्यक्ति की मृत्यु के समय, गांधीजी कि मृत्यु के समय विश्व की जितनी जनता विचलित और व्यथित हो उठी थी उसका दस प्रतिशत मानव हृदय भी विचलित और व्यथित् हो उठा हो ? अनेक प्रजाप्रिय शासक, राष्ट्रनेता और लोकप्रिय संतों का स्वर्गवास हुआ तब उनके लिए शोक किसी वर्गविशेष में ही हुआ करता था । कभी कभी तो शोक औपचारिक ही होता था। परंत गांधीजी की मृत्युकथा तो अद्वितीय ही है। दुनिया के प्रत्येक भाग में बसती जनता के सच्चे प्रतिनिधियों ने गांधीजी की मृत्यु पर आँसु बहाये हैं और आज भी गांधीजी की जीवनगाथा का स्मरण होते ही या उसके कुछ शब्द कान में पड़ते ही करोडों मनुष्य अपने आंसुओं को रोक नहीं सकते । इसीलिए हम कह सकते हैं कि गांधीजी की मृत्यु भी उनके जीवन के समान ही महान है । (धन्य धन्य हो गांधी बापू ! धन्य तेरी कुर्बानी - दुःखायल)
1
दुनिया के धर्मग्रंथों में गीता एक अद्भुत एवं अपूर्व ग्रंथ है । उसकी रचना करनेवाला भी ऐसा ही अद्भुत एवं आर्षदृष्टा होना चाहिए। जिसके मुख से गीता का उपदेश प्रस्फुटित हुआ है (या उनके द्वारा प्रस्तुत करवाया गया है) वह कल्पनामूर्ति या ऐतिहासिक कृष्ण भी निःशंक रूप से अद्भुत व्यक्ति है । गांधीजी को सच्चे रूप में सही ढंग से जाननेवाला कोई भी व्यक्ति इतना तो अवश्य समझ सकता है कि गीता को आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक अर्थ में गांधीजी ने जितना आत्मसात् किया था उतना गीता को आत्मसात् करनेवाले मनुष्य को खोज निकालने का काम अत्यंत कठिन है। गीता में कर्मयोग का ही प्रतिपादन है । इस तथ्य का समर्थन लोकमान्य तिलक से अधिक स्पष्ट एवं सुंदर रूप में अन्य किसीने किया हो तो मुझे पता नहीं है; परंतु उस अनासक्त कर्मयोग का पचास से भी अधिक वर्षों तक निरंतर तथा अखंड परिपालन गांधीजी ने कर दिखाया है । उन्होंने गीता के कर्मयोग का समर्थन जितने अंशों में जीवन जी कर किया है उतने अंशों में ग्रंथ लिखकर नहीं किया । गीता के अनासक्त कर्मयोग में दो पहलूओं का समावेश होता है। लोक जीवन की सामान्य सतह पर रह कर उसे उन्नत