Book Title: Pragna Sanchayan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

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Page 171
________________ दोनों कल्याणकारी : जीवन और मृत्यु __ १३३ बात करते तो असहिष्णु लोगों का वह समुदाय यह कह कर हिंदु लोगों को उकसाता कि देखिये, गांधीजी स्वयं को हिंदु कहलवाते हैं, हिंदु धर्म के अनुयायी होने की बात करते हैं, अक्षरशः गीता का आचरण करने की बात कते हैं, फिर भी आततायी मुस्लिमों के सामने भीरु हो कर झुक जाते हैं। सामान्य लोग जो लेनदेन में एक एक पैसे का हिसाब रखते हों और आततायी पर प्रहार कर के ही उसे सही मार्ग पर लाने के संस्कार जिनके मन पर दृढ़ हो गये हों, वे गांधीजी की दीर्घदृष्टिपूर्ण उदारता का उलटा अर्थ निकाले वह स्वाभाविक ही था। गांधीजी की दीर्घदृष्टि ऐसी थी कि पहले मेरे अपने घर का परिशोधन हो तो फिर दूसरे लोगों को परिशोधन करने के लिए कहना सरल होगा और दुनिया में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ सकती है। जब तक मुस्लिम लीग और हिंदु महासभा के बीच स्पर्धा चलती रही तब तक उस असहिष्णु समुदाय ने भारत की भोली प्रजा में एक ही प्रकार का जहर फैलाया कि गांधीजी के कारण हिंदु जाति एवं हिंदु धर्म असुरक्षित होता जा रहा है । कमनसीबी से देश का विभाजन हुआ और उसके फलस्वरूप हिंसा का, मारकाट का दावानल सुलग उठा । मुस्लिम लीग ने तो गांधीजी को इस्लाम के और मुसलमानों के शत्रु घोषित कर ही दिया था; कट्टर हिंदुमहासभावादियों ने भी उन्हें हिंदु धर्म के शत्रु कह दिया। जिन लोगों के मन में गांधीजी के विषय में ऐसी गलत धारण दृढ़ हो गई थी उन्होंने जब हिंदु तथा सिक्खों की कत्लेआम देखी, स्त्रियों के अपहरण देखे, तब तो उन्हें दृढ़ प्रतीति हो गई कि हिंदु धर्म या हिंदु जाति की रक्षा गांधीजी के हाथों हो यह बात आकाश कुसुमवत् ही है । यह कार्य तो हिंदु महासभा ही कर सकती है और वे ही दुगुनी ताकत से 'जैसे के साथ तैसा'हो कर शत्रु की, आततायियों की सान ठिकाने ला सकते हैं । कट्टर हिंदु महासभावादियों का यह मुद्दा इतना सरल था कि उसे समझने-समझाने के लिए अधिक चातुर्य की आवश्यकता थी ही नहीं, क्यों कि जनमानस सामान्यतः प्रथम से ही पाशविक वृत्ति से गढ़ा हुआ होता है, जब कि इतने लंबे समय से संकीर्ण मान्यताओं में बद्ध जनमानस को गांधीजी समझौता और विवेकपूर्ण मार्ग से सुधारना चाहते थे। डूबता हुआ या आपत्तियों से घिरा हुआ मनुष्य मजबूत न हो लेकिन तत्काल हाथ में आया हो ऐसे तिनके का सहारा ले रहा हो तब धैर्यपूर्वक, संकट सहन करके भी अधिक स्थिर उपाय का आलंबन लेने के लिए अगर कहा जाय तो उसमें सफलता मिलने की संभावना बहुत कम रहती है। अतः देश का विभाजन होने पर जो कौमी दावानल प्रज्वलित हो उठा, उससे बचने का केवल एक ही मार्ग हिंदुओं और

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