Book Title: Pragna Sanchayan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

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Page 176
________________ १३८ प्रज्ञा संचयन भी कोई गूढ़ ईश्वरीय संकेत है जो कल्याणमय है और उसके चिह्न अभी से दिखने लगे हैं। ___ गाँधीजी ने अपने आचरण द्वारा गीता का अर्थ बताया भी है और विकसित भी किया है । गाँधीजी की दृष्टि का अनुसरण करते हुए अगर गीता को समझने का प्रयत्न करें तो उसके सामान्य शब्दार्थ के उस पार एक लोकोत्तर भव्य अर्थ की झांकी प्राप्त होती है। इस बात का विस्तार यहाँ करने का स्थान नहीं है, परंतु गाँधीजी को श्रद्धांजली अर्पित करते समय उनकी दृष्ठि का अल्प परिचय करनेकराने के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करना अनुचित न होगा। युद्धप्रिय लोगों को उत्तेजित करने और उनके शौर्य को जगाने हेतु गीता में एक चमत्कारी उक्ति है जिसका प्रयोग उपयोग प्राचीन काल से आजतक किया गया है। इस उक्ति में कहा गया है 'अरे वीर! तू कमर कस ले। तैयार होजा और युद्ध भूमि के प्रति प्रस्थान कर ! युद्ध भूमि में अपनी पीठ मत दिखा । शत्रु से भयभीत मत हो ! यदि तू शत्रु के हाथों मृत्यु प्राप्त करेगा तो भी कुछ हानि नहीं होगी मृत्यु के बाद तु पृथ्वी के राज्य से कहीं अधिक विशाल स्वर्ग का राज्य प्राप्त करेगा और यदिशत्रु पर विजय प्राप्त करेगा तो यहाँ का राज्य तो है ही । जीवित रह कर या मृत्यु के बाद तु राज्य तो प्राप्त करेगा ही। शर्त यही है कि तू युद्ध भूमि से पीछेहट न करे।' इस प्रकार की उत्तेजना ने आज पर्यंत अनेक हिंसक युद्धों को बढ़ावा दिया है क्यों कि इस प्रकार की उत्तेजना किसी एक पक्ष को ही उत्तेजित करती है ऐसा नहीं है । दोनों पक्ष ऐसी उत्तेजना से बल प्राप्त कर प्राणांत युद्ध खेलते हैं जिसके कारण नाश की प्रक्रिया कभी रुकती नहीं । गाँधीजी ने इस उत्तेजना को मिटाया नहीं । उसके बल को कायम रखा । यही नहीं, उसके बल में वृद्धि की, परंतु उसे अहिंसा का नया जामा पहनाया, उसे नया स्वरूप प्रदान क्रिया और इस प्रकार उस उत्तेजना को अमर रसायण में परिवर्तित कर दिया । हज़ारों वर्षों से चली आ रही पाशवी हिंसक उत्तेजना को गाँधीजी ने मानवीय या दिव्य उत्तेजनों में परिवर्तित कर दी । यह किस प्रकार ? गाँधीजी ने उपरोक्त उत्तेजना को नया अर्थ देते हुए कहा - "शाश्वत सिद्धांत तो ऐसा है कि कोई कल्याणकारी कार्य करनेवाला व्यक्ति कभी दुर्गति प्राप्त नहीं करता। अतः हे वीर ! तू कल्याण की राह पर निर्भय हो कर विचरण कर । आगे ही बढ़ता जा। पीछेहट मत कर । किसीके अकल्याण का या किसीका बुरा करने का विचार भी मत कर । इस प्रकार कल्याण के मार्ग विचरण करते हुए अगर मृत्यु आ गई, गर

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