Book Title: Pragna Sanchayan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

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Page 177
________________ ___दोनों कल्याणकारी : जीवन और मृत्यु १३९ कभी अपना बलिदान देना भी पड़ा तो क्या ? इस प्रकार आत्मबलिदान देने के कारण तुझे तेरी वर्तमान स्थिति से अधिक उच्च भूमिका ही प्राप्त होने वाली है, क्यों कि कल्याण करनेवाला सद्गति ही प्राप्त करता है, दुर्गति में कभी नहीं जाता। और कल्याण के हेत विश्वसेवा करते हए अगर इस जन्म में ही सफलता प्राप्त हो गई तो तू यहीं पर ही सेवाराज्य के सुंदर परिणाम भोगेगा"। ... आज तक न हि कल्याणकृत् कश्चित् दुर्गतिं तात गच्छति' इस श्लोकार्ध के साथ संगति बिठाये बिना ही केवल परापूर्व के युद्ध के संस्कारों से बद्ध, विद्वान माने जाने वाले लोगों का मानस भी हतो वा प्राप्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्' इस पंक्ति का अर्थ पुरानी परंपरानुसार ही करता और मानवजाति उत्तेजनारूप मद्यपान कर के कौरव पांडवों की तरह भाई-भाई होते हुए भी परस्पर युद्ध करते, मारते मारते लड़ मरती। - इसके स्थान पर गाँधीजी ने भाई भाई को परस्पर लड़कर खतम होने के स्थाने नपर अपनी शक्ति को सर्वजनहिताय - समाज के हित में प्रयुक्त करने हेतु, समझाने के लिए गीता के उस वाक्य को अपने जीवन में चरितार्थ करते हुए नूतन अर्थ प्रदान किया, ऐसा अर्थ कि जो आज तक किसी भी आचार्य ने नहीं दिया था । गाँधीजी की ऐसी तो अनेक सिद्धियाँ हैं । ऐसी सिद्धि प्राप्त करनेवाला मनुष्य सामान्य नहीं है, वह तो महामानव है, क्यों कि उसका जीवन महान है और इसी कारण से उसकी मृत्यु भी महान है । वह तो मृत्युंजय है क्यों कि उसके समक्ष तो मृत्यु की ही मृत्यु हो जाती है और वह समग्र मानवजाति की चेतना के गहनतम स्तर में प्रविष्ट हो कर चेतना के स्तर को भी ऊर्ध्वगामी बनाता है।

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