Book Title: Pragna Sanchayan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

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Page 168
________________ १३० प्रज्ञा संचयन करनेवाला लोकसंग्रहकारी व्यावहारिक पहलू और तीनों काल में एक समान रूप से टिके रह सके ऐसे-चिरकालीन; शाश्वत मूल्यवाले सत्य अहिंसा तथा ईश्वरनिष्ठा जैसे तत्त्वों के साथ ही जीवन जीने का पारमार्थिक पहलू । गांधीजी के जीवन का आरंभ हुआ उस पारमार्थिक सत्य के आधार पर और उत्तरोत्तर, अधिक से अधिक विकसित, प्रसरित और नवपल्लवित होता गया उस व्यावहारिक पहलू या व्यावहारिक सत्य का अवलंब ले कर । गांधीजी के किसी भी जीवन कृत्य को लेकर हम सोचें तो अत्यंत स्पष्ट रूप से इस बात की प्रतीति होती है कि उनके प्रत्येक कार्य में पारमार्थिक तथा व्यावहारिक सत्य-दोनों का सहज तथा अविभाज्य समन्वय था । वे किसी भी क्षेत्र में, किसी भी विषय को ले कर काम कर रहे हों तब उसमें पारमार्थिक सत्य तो निहित अवश्य होता और उस पारमार्थिक सत्य को वे उस प्रकार व्यावहारिक स्तर पर रखते कि सत्य केवल श्रद्धा का या पूजा का विषय न रह कर बुद्धि का तथा आचरण का विषय भी बन जाता था। गांधीजी जैसे जैसे पारमार्थिक सत्य के आधार व्यावहारिक क्षेत्रों में अपनी प्रवृत्तियों को विकसित करते गये जैसे जैसे उनके समक्ष कठिन से कठिनतर समस्याएँ उपस्थित होती गईं, धर्म, कौम, समाज, अर्थशास्त्र, राजकारण जैसे अनेक विषयों की अत्यंत पुरानी जटिल समस्याओं को हल करने का बोझ उन पर आता गया, वैसे वैसे उन्हें अपने जीवन की गहराई में से पारमार्थिक सत्य के मंगलमय एवं कल्याणकारी पहलू के द्वारा अधिक से अधिक बल मिलता गया। यह बल ही गांधीजी का अमोघ-अजेय बल था। गांधीजी चाहे कितने ही क्षीण हो गये हों, तपस्या के कारण कृश हो गये हों फिर भी उनके जीवन में से जो आश्चर्यकारक तेज एवं बल प्रस्फुटित होता था उसे समझना किसी के लिए आसान न था । वह बल और तेज के पारमार्थिक सत्य के साथ उनके तादात्म्य का ही परिणाम था । उनकी वाणी या उनकी लेखिनी में, उनकी प्रवृत्ति में या उनकी शारीरिक स्फूर्ति में वही पारमार्थिक सत्य प्रकाशित होता था। गांधीजी के अनुयायी माने जाने वाले लोग भी गांधीजी के जैसी ही दुन्यवी तथा व्यावहारिक प्रवृत्ति करते थे, लेकिन उन्हें हमेशा ऐसा ही प्रतीत होता था कि उनके जीवन में गांधीजी के जैसा तेज नहीं है । ऐसा क्यों ? इसका उत्तर हमें मिलता है गांधीजी की पारमार्थिक सत्य के साथ की उनके जीवन की गहनतम-पूर्ण एकरूपता में से । ऐसी एकरूपता ने लोकजीवन के अनेक सांसारिक पहलूओं को

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