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प्रज्ञा संचयन
हम जानते हैं कि सोक्रेटिस - सुकरात की हत्या ग्रीक लोगों ने की, ईसु ख्रीस्त की - जिसस की हत्या ज्यू - यहूदियों ने की, परंतु हिंदु मानस तो बापूजैसे महान संत, ऋषि या तपस्वी की हत्या का विचार भी नहीं कर सकता। हिंदु मानस के ऐसे गौरव से हमारा मन उन्नत था । राज्यलोभ के कारण या अन्य कारणों से हिंदु जाति में भी अनेक खून हुए हैं, परंतु किसी सच्चे तपस्वी या सच्चे संत की हत्या तो उसके अत्यंत कट्टर विरोधी हिंदु के हाथों कभी भी नहीं हुई है ! हिंदु मान में ऐसे भव्यता के एवं धर्म के जो दृढ़ संस्कार थे उस संस्कार के लोप से, उसे लगे हए कलंक से समस्त हिंदु मानस आज लज्जित है और वही लज्जा आज उसके आँसुओं के द्वारा मानों बह रही है।
हिंदु कल्पना के अनुसार ब्राह्मण मानवता रूपी पुरुष का मुख है । उसके किन गुणों के कारण ब्राह्मण को मुख माना गया? कौन से गुण ? क्या घातकता के गुण के कारण ? नहीं नहीं, कभी नहीं । नरमेध - पशुमेध की प्राकृत भूमिका से ब्राह्मण कब का ऊपर उठ चुका था और उसने तो यज्ञ में पिष्टमय पशु को स्थान दे कर अहिंसा की उच्च भूमिका भी सिद्ध कर दी थी। उसने तो सब को 'सर्वभूतहिते रतः' का पाठ सिखाना भी शुरु कर दिया था । वह ब्राह्मण तो सर्व भूत-प्राणीमात्र के हितकल्याण के लिए रत था - तत्पर था । उसका जीवन तन्मय था इस कार्य के लिए। ऐसे ब्राह्मणत्व को कलंकित करनेवाला कोई ब्राह्मण भी उन व्यक्तियों के बीच या उन छोटे बड़े समूहों में किस प्रकार प्रविष्ट हुआ होगा? क्या हिंदुत्व एवं ब्राह्मणत्व का शतमुख विनिपात अब आरंभ हुआ होगा कि जिससे वह ‘सर्वभूतहिते रत' महापुरुष की ही हत्या का संकल्प करे ? महाकरुणा को समाप्त करने का संकल्प भी महान है यह सही है किंतु यह संकल्प क्रूर एवं कठोर होने के कारण अनार्य ही है।
और जो मानवतारूप पुरुष के मुखस्थान पर विराजित होने के योग्य माना गया है उस ब्राह्मण जाति में और उससे भी अधिक चित्त को पावन करने की ख्याति जिसे प्राप्त हुई है ऐसे ब्राह्मण वंश में ऐसा अनार्य संस्कार उत्पन्न हो तो फिर हिंदुजाति तथा ब्राह्मणश्रेष्ठ के लिए कौन-सा अच्छा तत्त्व शेष रहा है ? इस विचार से भी समझदार लोगों का हृदय चित्कार कर उठता है और आँसु रोके नहीं रुकते। __अब हमें कौन सांत्वना दे सकेगा यही हमारी एकमात्र तड़पन है, आरजू है । जो सांत्वना देने आता है वह स्वयं ही दिलगीरी, गमगीनी और शोक में डूब जाता है। स्वस्थ चित्त से और हिम्मत से भरे हुए हृदय से कोई आ कर आश्वासन दे सके