Book Title: Pragna Sanchayan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

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Page 154
________________ ११६ प्रज्ञा संचयन ही होगा । या तो उसे यही कहना पड़े कि समाज तथा राज्यतंत्र के नवनिर्माण जैसे कार्यों में योगदान देना मेरे लिए संभव नहीं है। और अगर वह प्रतिभावान तथा क्रियाशील व्यक्ति हो तो वह सौंपे गये सभी सूत्रों को अपने हाथ में लेकर अपने सिद्धांतों को और आदर्शों को क्रियान्वित करने का प्रयत्न करेगा। उसके इन प्रयत्नों का एक ही परिणाम आ सकता है और वह यह कि जैन परंपरा के एकमात्र निवृत्तिप्रधान संस्कारों में परिवर्तन करते हुए अहिंसा की ऐसी परिभाषा प्रस्तुत करे, सब कुछ विकसित करे जिसमें, उसमें चाहे कितना भी समाजलक्षी एवं व्यावहारिक परिवर्तन हो फिर भी अहिंसा की आत्मारूप मूलभूत तत्त्व - वासनाओं का त्याग तथा सद्गुणों का विकास - सुरक्षित रह सके । गांधीजी का धर्म : एक नूतन धर्म अगर कोई भी साधक मानवजीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उद्भव होनेवाली नई नई समस्याओं का हल धार्मिक दृष्टि से करना चाहे तो वह आसानी से गांधीजी के जीवन धर्म की दिशा को समझ सकता है । इसीलिए मैं मानता हूँ कि गांधीजी का जीवन धर्म जीवंत एवं नूतन है । नूतन अर्थात् प्राचीन पर निर्मित अभूतपूर्व महल है । वही कागज, वही तूलिका, वही रंग फिर भी चित्र अदृष्टपूर्व है। सारेगम के उन्हीं स्वरों का अभूतपूर्व संगीत है । अंग प्रत्यंग वे ही हैं किंतु वह तांडव अपूर्व है, वह नृत्य अलौकिक है क्यों कि गांधीजी की दृष्टि में इहलोक और परलोक के बीच की भेदरेखा मिट गई है। मनुष्य के जीवन रूप जलती मिथिला के अंदर ही रह कर उसकी आग बुझाने के प्रयत्न में ही पारलौकिक नरक यंत्रणा का निवारण करने का संतोष है तथा मानवजीवन में ही स्वर्ग या मोक्ष की संभावना को सिद्ध करने की अदम्य इच्छा है ।

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