Book Title: Pragna Sanchayan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

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Page 159
________________ गांधीजी की जैन धर्म को देन १२१ सारे राष्ट्र पर पिछली सहस्राब्दी ने जो आफतें ढ़ाई थीं और पश्चिम के सम्पर्क के बाद विदेशी राज्य ने पिछली दो शताब्दियों में गुलामी, शोषण और आपसी फुट की जो आफत बढ़ाई थी उसका शिकार तो जैन समाज शतप्रतिशत था ही, पर उसके अलावा जैन समाज के अपने निजी भी प्रश्न थे । जो उलझनों से पूर्ण थे । आपस में फिरकाबन्दी, धर्म के निमित्त अधर्म पोशक झगडे, निवृत्ति के नाम पर निष्क्रियता और ऐदीपन की बाढ़, नई पीढ़ी में पुरानी चेतना का विरोध और नई चेतना का अवरोध, सत्य, अहिंसा और अपरिग्रह जैसे शाश्वत मूल्यवाले सिद्धान्तों के प्रति सब की देखा देखी बढ़ती हुई अश्रद्धा - ये जैन समाज की समस्याएँ थीं। इस अन्धकार प्रधान रात्रि में अफ्रिका से एक कर्मवीर की हलचल ने लोगों की आंखें खोली ।वही कर्मवीर फिर अपनी जन्म-भूमि भारत में पीछे लौटा । आते ही सत्य, अहिंसा और अपरिग्रह की निर्भय और गगनभेदी वाणी शान्तस्वर से और जीवन-व्यवहार से सुनाने लगा। पहले तो जैन समाज अपनी संस्कार-च्युति के कारण चौंका । उसे भय मालूम हुआ कि दुनिया की प्रवृत्ति या सांसारिक राजकीय प्रवृत्ति के साथ सत्य, अहिंसा और अपरिग्रह का मेल कैसे बैठ सकता है ? ऐसा हो तो फिर त्याग मार्ग और अनगार धर्म जो हज़ारों वर्ष से चला आता है वह नष्ट ही हो जाएगा। पर जैसे-जैसे कर्मवीर गांधी एक के बाद एक नए-नए सामाजिक और राजकीय क्षेत्र को सर करते गए और देश के उच्च से उच्च मस्तिष्क भी उनके सामने झुकने लगे; कवीन्द्र रवीन्द्र, लाला लाजपतराय, देशबंधु दास, मोतीलाल नेहरू आदि मुख्य राष्ट्रीय पुरुषों ने गांधीजी का नेतृत्व मान लिया, वैसे-वैसे जैन समाज की भी सुषप्त और मूर्च्छित-सी धर्म चेतना में स्पन्दन शुरू हआ। स्पन्दन की लहर क्रमशः ऐसी बढ़ती और फैलती गई कि जिसने ३५ वर्ष के पहले की जैन-समाज की बाहरी और भीतरी दशा आँखों देखी है और जिसने पिछले ३५ वर्षों में गांधीजी के कारण जैन-समाज में सत्वर प्रकट होनेवाले सात्विक धर्म-स्पन्दनों को देखा है वह यह बिना कहे नहीं रह सकता कि जैन-समाज की धर्म चेतना - जो गांधीजी की देन है - वह इतिहास काल में अभूतपूर्व है । अब हम संक्षेप में यह देखें कि गांधीजी की यह देन किस रूप में है। जैन-समाज में जो सत्य और अहिंसा की सार्वत्रिक कार्यक्षमता के बारे में अविश्वास की जड़ जमी थी, गांधीजी ने देश में आते ही सबसे प्रथम उस पर

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