Book Title: Pragna Sanchayan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 153
________________ गांधीजी का जीवनधर्म ___११५ विशाल भावना ही उन्हें अनेक प्रकार के परस्पर विरुद्ध हों ऐसे वक्तव्य प्रस्तुत करने को प्रेरित करती थी। यद्यपि वस्तुतः ये वक्तव्य अविरोधी ही माने जा सकते हैं। गांधीजी ने जैन परंपरा को मान्य ऐसी निवृत्तिपक्षी अहिंसा को अपनाया अवश्य, परंतु उन्होंने अपने सर्वकल्याणकारी सामाजिक ध्येय की सिद्धि हेतु उस अहिंसा के अर्थ को इतना अधिक विस्तृत किया है कि वर्तमान परिस्थिति में गांधीजी का अहिंसा धर्म एक उनका स्वयं का - विशिष्ट धर्म बन गया है । उसी प्रकार भारत की एवं विदेशों की अनेक अहिंसा विषयक मान्यताओं को उन्होंने अपने लक्ष्य की सिद्धि के अनुकूल हों उस प्रकार से अपने जीवन में बन लिया और वही उनका स्वतंत्र धर्म बन गया जिसने उनकी विविध प्रवृत्तियों के द्वार खोल दिये । इस दृष्टि से सोच कर यह कहना ही पड़ेगा कि गांधीजी के जीवन में जैन धर्म उसके मूलभूत अर्थ में या पारिभाषिक अर्थ में है ही नहीं। उसी प्रकार यह भी कहा जा सकता है कि उनके जीवन में बौद्ध या अन्य कोई भी धर्म उसके सांप्रदायिक अर्थ में है ही नहीं और फिर भी उनके जीवन में जिस प्रकार का धर्म सक्रियरूप से काम कर रहा है उसमें सभी सांप्रदायिक धर्मो का योग्य रूप से समन्वय है। महान आत्मा गांधीजी हमारे जैसे ही एक मनुष्य थे। परंतु उनकी आत्मा महान मानी जाती है और वास्तव में उनकी आत्मा महान सिद्ध हुई ही है । और ऐसा हुआ है अहिंसाधर्म के लोक-अभ्युदयकारी विकास के कारण ही। अगर गांधीजी को कटोरी साफ करने जैसे कार्य से लेकर महानतम सल्तनत के विरुद्ध विद्रोह करने जैसी प्रवृत्ति न करनी पड़ी होती तो अथवा उस प्रवृत्ति में अहिंसा, संयम तथा तप का विनियोग करने की अंतःप्रेरणा न हुई होती, तो उनका अहिंसाधर्म शायद उस निरामिषाहार की प्रतिज्ञा जैसी मर्यादाओं के शब्दशः पालन की सीमा से बाहर आया ही न होता। उसी प्रकार अगर किसी समर्थतम जैन त्यागी के हाथों में समाज की सुवव्यस्था को संभालने का तथा उसमें वृद्धि करने का कार्य सौंपा जाय अथवा यह कहें कि उसे धर्म प्रधान राज्यतंत्र चलाने हेतु सत्ता के सूत्र सौंप दिये जायँ तो वह प्रामाणिक जैन क्या करे ? अगर विरासत में प्राप्त जैन अहिंसा का विकास किये बिना ही कुछ उत्तरदायित्व स्वीकार करना चाहे तो वह असफल

Loading...

Page Navigation
1 ... 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182