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गांधीजी का जीवनधर्म कौन सा धर्म शक्ति का सिंचन करता है ?
विचारक स्वयं सच्चे अर्थ में धार्मिक हो या न हो फिर भी गांधीजी की जीवनकथा पढ़ने के बाद या उनका जीवन प्रत्यक्ष देखने पर उसके मन में उनके जीवगत धर्म से संबंधित अनेक प्रश्न उठते हैं । वह सोचता है कि चौबीसों घंटे प्रवृत्ति में पूर्णतः लीन रहनेवाले इस व्यक्ति का जीवन धार्मिक हो सकता है या नहीं?
और अगर उसका जीवन धार्मिक है तो उसके जीवन में किस धर्म को स्थान प्राप्त हुआ है ? भूखंड पर प्रवर्तित सभी प्रसिद्ध धर्मों में से कौन सा धर्म इस पुरुष के जीवन को संजीवनी शक्ति प्रदान कर प्रवृत्ति में भी निवृत्ति की अनुभूति कराता हुआ निवृत्तिमें प्रवृत्ति का रसायन घोल रहा है ?
सामान्यतः प्रत्येक धार्मिक समाज के अनुयायियों के तीन वर्ग होते हैं - प्रथम वर्ग है कट्टरपंथियों का, दूसरा वर्ग है दुराग्रह से मुक्त लोगों का और तीसरा वर्ग है तत्त्वचिंतकों का । जैन समाज में भी न्यूनाधिक अंश में ऐसे तीन वर्ग अवश्य हैं। जिस प्रकार कौइ कट्टर सनातनी, कट्टर मुसलमान या कट्टर क्रिश्चियन अपने अपने धर्म के आचार, व्यवहार या मान्यताओं के ढाँचे को अक्षरशः गांधीजी के जीवन में न देखकर निश्चित रूप से यह मान लेता है कि गांधीजी सच्चे सनातनधर्मी सच्चे मुसलमान या सच्चे क्रिश्चियन नहीं हैं, उसी प्रकार कट्टर जैन भी गांधीजी के जीवन में जैन आचार या जैन रहनसहन के ढंग पूर्णतः न देखने पर प्रामाणिक रूप से यही मान लेता है कि गांधीजी धार्मिक भले ही हों, परंतु उनके जीवन में जैन धर्म के लिए कोई स्थान नहीं है क्यों कि गीता, रामायण आदि द्वारा वे ब्राह्मण धर्म को जो महत्व देते हैं ऐसा महत्व वे जैन धर्म को देते ही नहीं हैं। दूसरे वर्ग के अर्थात् दुराग्रह से मुक्त लोगों का वर्ग उपरोक्त ढांचे में ही धर्म की इति श्री मानता नहीं है तथा कुछ अंशों में आंतरिक गुणों को देखने वाला, समझने वाला एवं विचारक होने के कारण गांधीजी के जीवन में अपने धर्म का सुनिश्चित अस्तित्व देखता है । इस प्रकृतिवाला विचारक अगर सनातनी होगा तो गांधीजी के जीवन में सनातन धर्म का संस्करण देखेगा, मुसलमान या क्रिश्चियन होगा तो वह भी अपने धर्म की छाया देखेगा । उसी प्रकार ऐसी ही विचारधारावाला जैन समुदाय गांधीजी के जीवन में जैन धर्म के प्राण समान अहिंसा, संयम तथा तप की नूतन प्रतिष्ठा देखकर उनके जीवन को जैन धर्ममय मानेगा । तीसरा वर्ग जो अंतर्मुख एवं गुणदर्शी होने के साथ साथ चिंतनशील होने के कारण गांधीजी के जीवन में अपने अपने धर्म का सुनिश्चित