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आखिर आश्वासन किससे मिलता है?
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ऐसी कोई संभावना नहीं दिखती है । ऐसे संयोगों में भी अंत में बापूही उनके वियोग से अत्यंत व्यथित दुनिया को आश्वासन देते प्रतीत हो रहे हैं। मानों अदृश्य रह कर ही वे सब को एक समान ढंग से कह रहे हैं : क्या आप लोगों ने मुझे पहचाना नहीं है? और अगर पहचाना है तो फिर यह रुदन क्यों ? क्या में कभी भी रोया हूँ ? प्रसन्नचित्त रहकर हँसते हुए कर्तव्य करने के लिए और अपना ध्येय प्राप्त करने के लिए मर मिटने का मार्ग मैने नहीं बताया ? जो मैने आप सब से कहा ऐसा ही
आचरण अगर मैंने किया है. ऐसा आगर आप लोगों को लगता हो और आप अगर मुझ पर उतना ही विश्वास रखते हों तो फिर ये आँसु किस लिए? इतने व्यथित और विचलित क्यों हो रहे हैं? रोना, दीनता का अनुभव करना, अनाथता का अनुभव करना- ये सब गीता में ही नहीं, सभी धर्मशास्त्रों में वर्जित ही माना गया है तो मुझे श्रद्धांजलि देने वाले आप सब बहादुर बनो और सत्य एवं करुणा का आचरण करने हेतु मृत्युंजयी युद्ध में शहीद हो जाओ। .