Book Title: Pragna Sanchayan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 146
________________ १०८ प्रज्ञा संचयन अस्तित्व देखता है । इस प्रकृतिवाला विचारक अगर सनातनी होगा तो गांधीजी के जीवन में सनातन धर्म का संस्करण देखेगा, अगर वह मुसलमान या क्रिश्चियन होगा तो वह भी उनके जीवन में अपने धर्मरूप हृदय की धडकन को सुनेगा । उसी प्रकार की विचारधारा वाला जैन समुदाय गांधीजी के जीवन में जैन धर्म के प्राणभूत अहिंसा, संयम तथा तप की नूतन प्रतिष्ठा को देखकर उनके जीवन का जैन धर्ममय मानेगा । तीसरा वर्ग जो अंतर्मुख एवं गुणदर्शी होने के साथ साथ स्व या पर के विशेषण के बिना ही धर्म के तत्त्व के विषय में चिंतन करता है ऐसे तत्त्वचिंतक वर्ग की दृष्टि में गांधीजी के जीवन में धर्म का अस्तित्व तो है ही, परंतु वह धर्म किसका - इस संप्रदाय का या उस संप्रदाय का - ऐसा नहीं, बल्कि उन सर्व संप्रदायों के प्राण स्वरूप फिर भी सर्व संप्रदायों से पर ऐसा प्रयत्नसिद्ध स्वतंत्र धर्म है । भले इगिने ही किंतु ऐसे तत्त्वचिंतक जैन समाज में हैं जो गांधीजी के जीवनगत धर्म को एक असांप्रदायिक एवं असंकीर्ण धर्म मानेंगे, परंतु उसे सांप्रदायिक परिभाषा में जैन धर्म मानने की भूल तो करेंगे ही नहीं । संप्रदाय का धर्म नहीं बिना कहे भी पाठक यह समझ सकेंगे कि यहाँ गांधीजी के जीवन के साथ जैन धर्म के संबंध का प्रश्न प्रस्तुत होने के कारण मैं उस मर्यादा के बाहर अन्य धर्मों से संबंधित विशेष चर्चा नहीं कर सकता हूँ । मैं स्वयं स्वतंत्र दृष्टि से यह दृढ़तापूर्वक मानता हूँ कि गांधीजी के जीवन में उदित, विकसित एवं व्याप्त धर्म किसी संप्रदाय विशेष का धर्म नहीं है । वह तो सर्व संप्रदायों से पर फिर भी सभी तात्त्विक धर्मों के साररूप है जो उनके अपने विवेकपूर्ण सरल-सीधे-सादे प्रयत्नों द्वारा साधा गया है। 'गांधीजी का धर्म किसी एक संप्रदाय में सीमित नहीं रहता, बल्कि उनके धर्म में अन्य सभी संप्रदाय समाविष्ट हो जाते हैं' इस तथ्य को मधुकर के दृष्टांत के द्वारा अधिक अच्छी तरह से समझाया जा सकता है । इमली और आम्रवृक्ष, बबुल और नीम, गुलाब और चंपा जैसे एक दूसरे से पूर्णतः भिन्न रस और गंधवाले पुष्प एवं पत्र उत्पन्न करनेवाले वृक्ष जहाँ हों वहाँ उन सब में से भिन्न भिन्न प्रकार का रस चूस कर भ्रमर अपना एक छत्ता तैयार करता है । मधुपटल की स्थूल रचना तथा उसमें संचित • मधुरस में उन भिन्न भिन्न वृक्षों का रस मिश्रित होता है परंतु वह शहद न तो इमली के जैसा खट्टा होता है, न आम की तरह खट्टा-मीठा । न तो वह नीम के जैसा कडुआ

Loading...

Page Navigation
1 ... 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182