Book Title: Pragna Sanchayan
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

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Page 149
________________ गांधीजी का जीवनधर्म १११ दें तब उनके इतने मूल्यवान इतने महत्त्पूर्ण उपवासों को जैन धर्मानुयायी शायद ही जैन तप कहेंगे। अहिंसा तथा संयम के तत्त्व परंपरागत जैन धर्म का उदार दृष्टि से अभ्यास करनेवाला कोई भी विचारक जब गांधीजी के जीवनधर्म के विषय में खुले मन से विचार करता है तब वह इस सत्य का तो अवश्य स्वीकार करता है कि गांधीजी का जीवन व्यवहार हिंसा तथा संयम के तत्त्वों पर प्रतिष्ठित है तथा प्रामाणिकता पूर्वक जैन धर्म का आचरण करनेवाले भूतकालीनं या वर्तमानकालीन पुरुषों का आचार व्यवहार भी अहिंसामूलक एवं संयममूलक है । इस प्रकार तो वह विचारक यह मान ही लेता है कि जैन धर्म के प्राणभूत अहिंसा, संयम और तप गांधीजी के जीवन में काम कर रहे हैं । परंतु इससे आगे बढ़कर जब वह विचारक तथ्यों के विषय में विचार करता है तब उसके मन में सचमुच द्विधा उत्पन्न होती है । गांधीजी की अनेकविध प्रवृत्तियों में वह जिस प्रकार अहिंसा का अमल होता देखता है और कई बार गांधीजी के जीवन में अहिंसा के नाम पर ऐसा आचरण देखे जो उनके विधानों से विरुद्ध प्रतीत हो तब जैन परंपरा में पहले से ही मान्य की गई एवं वर्तमान में भी स्वीकृत आचरणाओं के साथ उसकी तुलना करता है और तब उसका उदार चित्त भी प्रामाणिकता पूर्वक ऐसी शंका किये बिना नहीं रह सकता है कि अगर सिद्धांत के रूप में अहिंसा तथा संयम का तत्त्व एक ही हो तो यथार्थ त्यागी ऐसे जैन के जीवन में तथा गांधीजी के जीवन में पूर्णतः विरुद्ध रूप से वे किस प्रकार काम कर सकते हैं ? विचारक का यह प्रश्न आधारविहीन नहीं है । परंतु अगर इसका सही उत्तर हम प्राप्त करना चाहते हैं तो उसके लिए अधिक गहराई में जा कर चिंतन करना होगा । दृष्टिबिंदु का साम्य जैनधर्म का दृष्टिबिंदु आध्यात्मिक है और गांधीजी का दृष्टिबिंदु भी आध्यात्मिक है । आध्यात्मिकता अर्थात् अपने मन में स्थित वासनाओं की मलीनता को दूर करना । अति प्राचीन समय के तपस्वी संतों ने देखा कि काम, क्रोध, भय आदि वृत्तियाँ ही मलीनता की जड़ हैं और वही आत्मा की शुद्धता का नाश करती हैं एवं शुद्धता की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करती हैं । अतः उन्होंने इन

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